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________________ अनेकान्त/5302 %%% %%% %% % %% %%%% जैन संस्कृति की मूल धरोहर सम्मेद शिखर जी शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर जी जैनियों का सर्वाधिक पूजनीयवन्दनीय सिद्ध-क्षेत्र है। इस अनादि निधन तीर्थ क्षेत्र का अनुपम माहात्म्य है। प्रत्येक काल की चौबीसी के तीर्थंकरों ने शिखर जी से निर्वाण प्राप्त किया है, परन्तु काल-दोष के प्रभाव से वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर ही यहां से मोक्ष गए हैं। शास्त्रों के अनुसार तीर्थंकरों के निर्वाण-स्थलों को इन्द्र ने अपने मेरुदण्ड से चिन्हित किया था, इसलिए उन्हीं स्थानों पर तीर्थंकरों के चरण-चिन्ह प्रतिष्ठित किये गये हैं, जो हमारी शाश्वत आस्था और संस्कृति के प्रतीक हैं। भावना यह है कि हम भी तीर्थंकरों के पद-चिन्हों पर चलकर अपना मुक्तिमार्ग प्रशस्त करें। जैन-दर्शन में निर्वाण प्राप्त करना अंतिम लक्ष्य माना गया है, इसीलिए हम अपने मंदिरों में तीर्थंकरों के जिनबिम्ब प्रतिष्ठित कर उनकी पूजा-उपासना करके आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। यदि इन तीर्थंकरों ने शिखरजी से मोक्ष प्राप्त न किया होता तो मंदिरों में उनकी प्रतिमा प्रतिष्ठित करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। वस्तुतः सम्मेद शिखर हमारी संस्कृति का मूल आधार है। जैन समाज का प्रत्येक व्यक्ति (महिला-बाल-वृद्ध) असीम श्रद्धा के वशीभूत आज भी शुद्ध भाव से नंगे पैरों 27 किलोमीटर पैदल चलकर शिखरजी की वन्दना को जीवन में प्राथमिकता देता है। अपनी इस पवित्र भावना की पूर्ति के निमित्त वन्दनार्थी जब गणधर टोंक पर पहुंचता है तो यात्रा की थकान को भूलकर, उसका मन वैराग्य भावना से परिपूर्ण होकर हर्ष-विभोर हो उठता है, कारण है, गुरु गणधर के प्रति वह कृतज्ञ भाव, जिससे जिनेन्द्र प्रणीत तत्त्वों का बोध होता है और अज्ञान-अंधकार मिटता है। साक्षात उपकारी होने से ही सर्वप्रथम गणधर टोंक की वन्दना करके पर्वतराज के विभिन्न शिखरों पर स्थित तीर्थंकर टोंकों की वन्दना की जाती है। ईसा की प्रथम शताब्दी के जैनाचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने निर्वाणकाण्ड गाथा में श्री सम्मेद शिखर जी की वन्दना इन शब्दों में की है %% %% %%% %%% %%%% %% %%%%%
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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