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अनेकान्त वीर सेवा मंदिर, २१.दरियागंज, नई दिल्ली-२
वी.नि स २५२६ वि.स २०५६
| वर्ष ५३ किरण १
जनवरी-मार्च |
२०००
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सीख
जानत क्यों नहि रे, हे नर आतम ज्ञानी राग दोष पुद्गल की संगति
निहचै शुद्ध निशानी।। जानत।। 1 ।। जाय नरक पशु नर सुर गति में
ये परजाय विरानी।। सिद्ध स्वरूप सदा अविनाशी
जानत बिरला प्रानी।। जानत।। 2 ।। कियो न काहू हरै न कोई,
गुरु सिख कौन कहानी। जनम मरन मल रहित अमल है,
कीच बिना ज्यों पानी।। जानत।। 3 ।।
सार पदारथ है तिहुँ जग में
नहि क्रोधी नहि मानी।। ' 'द्यानत' सो घट माहि विराजै,
लख हजै शिवथानी।। जानत ।। 4 ।।