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________________ अनेकान्त/३५ 15. धर्मनाथ 16. शान्तिनाथ 17. कुन्थुनाथ 18. अरहनाथ 19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुव्रतनाथ 21. नमिनाथ 22. नेमिनाथ 23. पारसनाथ 24. वर्द्धमान या महावीर। पुराणों में प्रथम दो कालों को भोग-भूमि काल माना हैं इन कालों में आधुनिक ग्राम-नगर जैसी सभ्यता नहीं थी। लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति कल्पवृक्षों से होती थी, ये दस प्रकार के थे। लोग परिवार बनाकर नहीं रहते थे तथा खेती व्यापार शिल्पकला आदि करना नहीं जानते थे। भाई-बहन का युगल जन्म होता था 49 दिन में वे तरुण हो जाते थे। अनायास ही परस्पर विवाह हो जाता था तीसरे काल की अवधि लगभग 84 लाख पूर्व वर्ष से कुछ अधिक रह गई, कल्पवृक्षों का अभाव होने लगा सूर्य चन्द्रमा दिखाई देने लगे प्रजा भूख से व्याकुल होने लगी भूख से पीड़ित प्रजा नाभिराय के पास पहुंची तो उन्होंने धैर्य बंधाया और ऋषभदेव के पास भेजा ऋषभेदव ने कृषि, मसि आदि की शिक्षा दी इसी कार्य के आधार पर क्षत्रिय, वैश्य शुद्र वर्णो की व्यवस्था की गई जो कालान्तर में जाति में बदल गई। भरत चक्रवर्ती ने कुछ लोगों को श्रेष्ठ मानते हुए उन्हें ब्राह्मण कहा उनका काम पठन-पाठन एवं धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न कराना था। इसी तीसरे काल में चौदह कुलकरों का जन्म हुआ जिन्हें मनु भी कहते हैं। तीसरे काल में जब चौरासी लाख पूर्व वर्ष तथा 3 वर्ष साढ़े आठ माह बाकी रहे तो चौदहवें कुल का नाभिराय एवं मरूदेवी के जैन धर्म के इस काल के प्रथम तीर्थकर ऋपभेदव का जन्म चैत्र कृष्णा नौमी को हुआ देवों ने ऋषभेदव का जन्मोत्सव मनाया इनकी 84 लाख पूर्व वर्ष की आयु थी तथा 63 लाख पूर्व वर्ष शासन किया दीक्षाकाल एवं केवली अवस्था में एक लाख पूर्व वर्ष कम एक हजार वर्ष रहे जब सुखमा-दुखमा तीसरे काल में तीन वर्ष साढ़े आठ माह बाकी रहे तब ऋषभदेव ने समस्त कर्मो की कालिमा को काटकर कैलाश पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया और सिद्ध सिला पर विराजमान हुए। वैदिक धर्म के प्रमुख ग्रंथ श्रीमद्भागवत में ऋषभेदव को आदिब्रह्मा जैन धर्म का इस काल का प्रथम तीर्थकर माना है इनके 100 पुत्र 2 पुत्रियां हुई। बड़े पुत्र भरत चक्रवर्ती हुए तथा इनकी वड़ी पुत्री व्राह्मी के नाम पर ब्राह्मीलिपि चली। इन्हें 18 लिपियो का ज्ञान था। माकन्डेय पुराण के अध्याय 50.39.41 के अनुसार ऋपभ ने विरक्त होकर राज्य अपने ज्येप्ठ पुत्र भरत को सौंपा उसी के नाम पर आर्यावर्त का नाम भारतवर्प पड़ा। भरत चक्रवर्ती हुआ। इसी प्रकार का उल्लेख वैदिक कूर्मपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण, गरुणपुराण, वाराहपुगण, लिंगपुराण, स्कन्धपुराण
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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