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________________ क जनोपयोगीकृति - श्री सम्मेद शिखर मंगलपाठ रचनाकार – सुभाप जैन (शकुन प्रकाशन) प्राप्ति स्थान – श्री दिगम्बर जैन शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखर ट्रस्ट वीर सेवा मदिर, 21, दरियागज, नई दिल्ली-110002 आधुनिक साज-सज्जा-युक्त उक्त कृति तीर्थगज सम्मेद शिखर के माहात्म्य को जन-जन तक पहुँचाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण रचना है। वस्तुत तीर्थक्षत्र की वन्दना भावा की निर्मलता मे निमित्त कारण है। यही कारण है कि हमारे परम्परित आचार्यो ने भी तीर्थक्षेत्र की भक्ति-वन्दना को पर्याप्त महत्त्व दिया है। कविवर द्यानतगय, वृन्दावन आदि भक्तिर्गसक कवियो ने जो पृजन-विधन रचे ह, वे सभी भावी को निर्मल बनाने के लिए स्वान्त सखाय ही रच है। यह बात अलग ह कि उनकी रचनाआ के माध्यम से भक्तजन आज भी अपनी मानसिक वेदना का शमन करने का प्रयत्न करते हैं | प्रस्तुत कृति के रचनाकार श्री सुभाष जी ने भी स्वान्त सुखाय ही वन्दना, पूजन, आरती की रचना की होगी, परन्तु वह रचना सर्व-जनोपयोगी बन गई है। सम्मेद शिखर की लम्वी वन्दना करते हा इनके उपयोग से भावा निर्मलता का सचार होगा आर विपय कपायों से कछ समय के लिए ही सही, मुक्ति मिल सकेगी। श्री दिगम्बर जैन शाश्वत तीर्थगज सम्मेद शिखर ट्रम्ट ने इस प्रचारित कर सामयिक कदम उठाया है। अतः वह साधुवादाह है। प्रस्तुत कृति मगरणीय और मनन चिन्तन के लिए उपयोगी है। सामाजिक सस्थाओं में अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हा रचनाकार श्री सभाप जैन वधाई के पात्र है जिन्होंने सर्वजनोपयोगी रचनाओं का सृजन किया। शिखर जी ट्रस्ट को पत्र लिखकर पुस्तकं निःशुल्क प्राप्त की जा सकती है। -डॉ. सुरेश चन्द्र जैन
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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