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________________ अनेकान्त / ४९ का पूर्ण क्षय कर देता है और पूर्ण वीतरागता के उच्च शिखर पर आसीन हो जाता है, तब इस गुणस्थान की प्राप्ति होती है 1 सयोगकेवली - व्यक्तित्व की तेरहवें मच पर पहुँचने वाले भाग्यशाली हैं । यह व्यक्तित्व की सर्वोच्चता है, जीवन्मुक्तता है, प्रकाश के आवरणो का छिन्न-भिन्न होना है। इससे ऊचा व्यक्तित्व मानव द्वारा संभव नहीं है। वे जो कुछ भी कहते हैं, वह विश्व पर कृपा है । उसकी बातें सच्ची होती है. पर पैनापन अपूर्व होता है। जैसे ही जब भी वह व्यक्ति कहीं से गुजरेगा तो सारा समां ही बदल जायेगा । उसके व्यक्तित्व के गुलाबी फूलो से सारा वातावरण सुरभित हो जाता है । जीवन मे कुछ कर्ज ऐसे होते है जिसका नाता शरीर के साथ होता है। जब कर्ज चुक जाते है तो वह पदार्थ और परमाणु के हर दबाव से मुक्त हो जाती है। यह कैवल्य दशा है पतजलि ने इसे ही निर्बीज-समाधि कहा है। एक जीवन्मुक्ति है और एक विदेह मुक्ति । भगवान् महावीर के अनुसार सम्बुद्ध पुरुष का कैवल्य दशा मे प्रवास करना सयोग केवली अवस्था है । जिस अवस्था मे स्व- पर पदार्थो के ज्ञान और दर्शन के लिए इन्द्रिय आलोक और मन की अपेक्षा नही होती है, उसे केवल' अथवा असहाय ज्ञान कहते है । वह केवल अथवा असहाय ज्ञान जिसके होता है - उन्हे केवली कहते हैं । मन-वचन और काय की प्रवृत्ति को योग कहते है, जो योग की साथ रहते है उन्हें सयोग कहते है । इस तरह जो सयोग हो हुए भी. केवली है उन्हे सयोग केवली कहते है । जिसके केवलज्ञान रूपी सूर्य की अविभाग प्रतिच्छेद रूप किरणों के समूह से अज्ञान अधकार सर्वथा नष्ट हो गया है और जिनको नव केवल लब्धियों के प्रगट होने से परमात्मा - यह व्यपदेश प्राप्त हो गया है, उस जीव को इन्द्रिय आलोक आदि की अपेक्षा न रखने वाले ज्ञान दर्शन से युक्त होने के कारण केवली ओर काय वाक् मन के योग से युक्त रहने के कारण सयोग तथा घातिया कर्मो की पूर्णतः जीत लेने के कारण 'जिन'
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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