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________________ अनेकान्त/४६ को जडमूल से उखाडने आते है. वे क्षपक कहलाते हैं। जो मोहनीय कर्म के सस्कारो का उपशमन करते हुए आगे बढ़ते है, वे नियम से नीचे गिर जाते हैं और जो मोहनीय कर्म के संस्कारों को निर्मूल करते हुए ऊपर की भूमिकाओं में अग्रसर होते हैं, वे सर्वोपरि भूमिका तक पहुच जाते है । ____ अनिवृत्तिकरण-आत्मदर्शी जब समदर्शी बन जायें तो उसके व्यक्तित्व में चार चांद लग जाते हैं. नौंवे मच में अहं सघर्ष नही रहता। वे बाहुबली की तरह मन मे रहने वाली अहंकार की बेडियो को पहचान लेते हैं। व्यक्ति समदर्शी का व्यक्तित्व तभी पा सकता है, जब आदमी अहकार के मदमाते हाथी से नीचे उतरेगा। अह के हाथो पर चढे-चढे क्या व्यक्तित्व मे पूर्णता आ सकती है? __बाहुबली ने सयम लिया. घोर तपस्या में लीन हो गये। पर घोर तपस्या करने मात्र से व्यक्तित्व पर आने वाली झुझलाहट समाप्त नही हो जाती। व्यक्तित्व पूर्णता के लिए तभी सफल बन पाता है. जब वह व्यक्तित्व विकास की इस नवमी कक्षा मे मनन करता है। समदर्शी बनकर व्यक्तित्व को निखारता है। बाहुबली का व्यक्तित्व पूर्णता कैसे पाता, मन में अहम् और कुठा की ग्रन्थिया जो अटकी थीं। बाहुबली की बहनें ब्राह्मी और सुन्दरी उनके पास जाती है। वे बोली भाई हाथी से नीचे उतरो, अपने पैरो पर खडे होओ। ___ बाहुबली बहिनो की आवाज सुनकर चौक गये। सोचा अरे मैं और हाथी पर चढा हुआ। उनके व्यक्तित्व को गहरा धक्का लगा। उन्होने स्वय को अहकार के मदमाते हाथी पर बैठा पाया। जैसे ही समदर्शिता उभरी, थोडी देर मे उन्होने स्वय के व्यक्तित्व को संपूर्ण पाया। नौवे गुणस्थान में उत्पन्न हुए भावोत्कर्ष की निर्मलता अतितीव्र हो जाती है। इस गणस्थान मे विचारों की चंचलता नष्ट होकर उनकी सर्वत्रगामिनी वृत्ति केन्द्रित और समरूप हो जाती है। इस अवस्था मे साधक की सूक्ष्मतर और अव्यक्त काम सबंधी वासना जिसे वेद कहते हैं,
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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