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________________ अनेकान्त/४२ सामादन-बहुत से व्यक्ति ऐसे होते है, जो अपने व्यक्तित्व को ऊचा उठाने के लिए उसे एवरेस्ट की चोटी पर चढाने के लिए मेहनत कई बार करते हैं, पर उन्हे सफलता नही मिलती, यह रास्ता सचमुच काई भरा है, फिसलन भरा है। सम्यक्त्व रूपी रत्नपर्वत के शिखर से गिरकर, जो जीव मिथ्यात्व रूपी भूमि के सन्मुख हो चुका है, अतएव जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो रहा है, परन्तु अभी तक मिथ्यात्त्व को प्राप्त नहीं हुआ उसे सासन या सासादन गुणस्थान कहते है। सम्यग्मिथ्यात्व-व्यक्तित्व विकास के यात्री प्राय ढुलमुल यकीन वाले होते हैं, वे अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए कदम तो मंजिल की ओर बढाते है. पर उन्हें मजिल के प्रति शक रहता है इसलिए वे वापिस तीसरी सीढी से नीचे लौट जाते है। इस गुणस्थान मे सत्य-असत्य दोनो का ही मिश्रण होता है इसमे जीव की स्थिति डांवाडोल रहती है। इसमे जीव सदेहशील रहता है जिस प्रकार दही और गुड को इस प्रकार मिलाने पर, जिससे उसको भिन्न नही किया जा सके. उस द्रव्य के प्रत्येक परमाणु का रस मिश्र रूप होता है। उसी प्रकार मिश्र परिणामों में भी एक ही काल मे सम्यक्त्व और मिथ्यात्व रूप परिणाम रहते है। अविरतसम्यक्त्व-जबकि अपने व्यक्तित्व को सही मायने मे व्यक्तित्व का रूप तभी दिया जा सकता है जब व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को बनाने के लिए लग्नशील होगा। उसे अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए यह चौथा दर्जा दिया है। ऐसे व्यक्ति करते-धरते तो दिखाई नही देते। वे मूर्ति बनाने की आशाओं को संजोए रहते हैं. पर उसे बना नही पाते. वे मात्र अपने भीतर ही भीतर अतरं व्यक्तित्व के पत्थर को ठोकते-पीटते रहते हैं।
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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