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________________ अनेकान्त/३८ वाले म्लेच्छ खण्ड के बीचोबीच वृषभगिरि नाम का गोल पर्वत है, जिस पर दिग्विजय के पश्चात् चक्रवर्ती अपना नाम अकित करता है। विष्णु-पुराण के अनुसार भी जम्बूद्वीप मे सुमेरु के दक्षिण में हिमवान्, हेमकूट और निषध तथा उत्तर में नील श्वेत और शृंगी ये छह पर्वत हैं जो इसको भारतवर्ष, किंपुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्यमय और उत्तरपूर्व इन सात क्षेत्रों में विभक्त कर देते हैं। ___ इस प्रकार जैन तथा वैदिक परम्परा के अनुसार भरतक्षेत्र या भारतवर्ष पहला क्षेत्र है। यहाँ भरतक्षेत्र के नामकरण पर थोडा विचार किया जाना असमीचीन नहीं होगा। जैन दर्शन के अनुसार लोक अनादि है। द्वीप क्षेत्र आदि भी अनादि हैं। अत. भरतक्षेत्र के नामकरण का प्रश्न नहीं उठता। भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड के भारतवर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर पडा. ऐसा उल्लेख समग्र जैन साहित्य में मिलता है। आधुनिक इतिहास में यही पढाया जाता है कि दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नाम पडा, परन्तु वैदिक साहित्य के ही अनेक पुराणो के आधार पर यह स्पष्ट है कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नाम पडा। ध्यातव्य है कि जैन परम्परा का भरतक्षेत्र ही वैदिक परम्परा का भारतवर्ष है। भागवत के अनुसार पहले भरतखण्ड या भारतवर्ष का नाम 'नाभिखण्ड' या 'अंजनाभ' था। डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल ने लिखा है-स्वायंभुव मनु के प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र नाभि. नाभि के ऋषभ और ऋषभ के सौ पुत्र हुए जिनमे भरत श्रेष्ठ थे। यही नाभि अजनाभ भी कहलाते थे उन्हीं के नाम पर यह देश अंजनाभवर्ष कहलाता था' |२८ एक बार इन्द्र ने जब वर्षा नहीं की तो ऋषभदेव ने अपने वर्ष अजनाभ में अपनी योगमाया से खूब जल बरसाया। यही अंजनाभ वर्ष आगे चलकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष कहाया । लिंग पुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, मार्कण्डेय पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, नारद पुराण, शिवकूर्म, वाराह, मत्स्य आदि पुराणों के अनुसार भी प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध, आग्नीध्र के
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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