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अनेकान्त/३७ इन क्षेत्रों को बांटने वाले पूर्व से पश्चिम तक फैले हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छह वर्षधर या कुलाचल पर्वत हैं ।१८ ये क्रमश: सोना, चादी, तपाया सोना, वैडूर्य, चांदी और सोने के रंग वाले हैं।१९ ये ऊपर और मूल में समान विस्तार वाले हैं।२० इन पर्वतों पर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये तालाब हैं।२१ जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रो में बहने वाली १४ नदियाँ निम्न हैं-गंगा-सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकला-रूप्यकुला, रक्ता-रक्तोदा । २२ इनमें भी पहली-पहली नदी पूर्व समुद्र में तथा दूसरी-दूसरी पश्चिम समुद्र में गिरती है।२३ गगा-सिन्धु आदि नदियाँ १४ हजार परिवार वाली हैं अर्थात् ये इनकी सहायक नदियाँ हैं । २४ ।।
भरत क्षेत्र -
जैसा कि ऊपर कह आये हैं थाली के आकार के जम्बूद्वीप में छह कुलाचलो के कारण सात क्षेत्र हो गये हैं। हिमवान् पर्वत के कारण बंटा हुआ पहला क्षेत्र भरत है, यह सुमेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में है। पहला क्षेत्र होने के कारण यह अर्धचन्द्राकार है। इसके दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में लवण सागर है। उत्तर में, हिमवान् पर्वत है जो इसे हैमवत् क्षेत्र से पृथक् करता है। हिमवान् पर्वत के ऊपर जो पद्महद है उससे गंगा और सिन्धु दो नदियाँ निकलकर भरतक्षेत्र में आयीं हैं। गंगा पूर्व की ओर और सिन्ध पश्चिम की ओर है। इस क्षेत्र के बीच में विजयार्ध नाम का पर्वत है. जो पूर्व से पश्चिम तक फैला है। इस प्रकार इस क्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। इन खण्डों में पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं और एक आर्यखण्ड है। जिसमें आर्य लोग निवास करते हैं। भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन तथा एक योजन का छह बटे उन्तीस है ।२५
आज हम जो पृथ्वी का भाग देख रहे हैं वह सब इसी आर्यखण्ड में समाहित है। इसी आर्यखण्ड में अयोध्या नाम की शाश्वत नगरी है। जिसका क्षेत्रफल १२४९ योजन है।२६ विजयाध के उत्तर वाले तीन खण्डों में मध्य