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________________ अनेकान्त/२९ चटाईयाँ बनवा लेना, बहुत सी लकड़ियाँ कटवा लेना या बहुत सी ईटें पकवा लेना तथा फिर कम खरीदना आदि और इसी प्रकार हिंसा के उपकरण ओखली - मूसल, हल- फाली, गाड़ी - जुआ, धनुष-बाण आदि को साथ-साथ रखना, जिससे मांगने पर मना करना संभव हो। यह हिंसादान अनर्थदण्डव्रत का अतिचार है । सेवन करने योग्य भोगोपभोग की सामग्री को जरूरत से अधिक संग्रह करना उपभोगपरिभागानर्थक्य नामक अतिचार है । यदि स्नानादि के समय तैल साबुन आदि का संग्रह अधिक होगा तो जलाशय में स्नानार्थ आने वाले अन्य लोग भी उनका प्रयोग करके जीवघात करेंगे। यह भी प्रमादचर्या अनर्थदण्डव्रत का अतिचार है । इस अतिचार को पं आशाधर ने सेव्यार्थाधिकता नाम दिया है । ३६ ऐसा प्रतीत होता है कि अपध्यान एव दु श्रुति नामक अनर्थ दण्डव्रतों का कोई अतिचार इन पांच अतिचारों में सम्मिलित नहीं है । इस पर विचार अपेक्षित है । अनर्थदण्डव्रत का महत्त्व और प्रयोजन अमृतचन्द्राचार्य ने पुरुषार्थसिद्धयुपाय में कहा है जो व्यक्ति अनर्थदण्डों को जानकर उनका त्याग कर देता है, वह निर्दोष अहिंसा व्रत का पालन करता है । " तत्त्वार्थराजवर्तिक में कहा गया है कि पूर्वकथित दिग्व्रत और देशव्रत तथा आगे कहे जाने वाले उपभोग - परिभोग परिमाण व्रत में व्रती ने जो मर्यादा ली है, उसमें भी वह निरर्थक गमनादि तथा विषय सेवनादि न करें, इसी कारण बीच में अनर्थदण्डव्रत का ग्रहण किया गया है । ३८ यत. अनर्थदण्डव्रत श्रावक की निष्प्रयोजन पापपूर्ण प्रवृत्तियों का त्याग कराकर व्रतों को निर्दोष पालने में सहकारी है तथा यह व्रतों में गुणात्मक
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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