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अनेकान्त
महत्व है क्योंकिाउत्तराध्ययन के अनुसार यह ज्ञानावरण कर्म की क्षय क्षयोपशम करता है। स्थानांग 5.220 और उत्तराध्ययन 29-19 में इसके वाचना, पृच्छना, परिवर्तना (आम्नाय), अनप्रेक्षा और धर्मकथा के रूप में पांच भेद बताये गये हैं। इसके विपर्यास में, उमास्वामी ने 9.25 में कुछ पारिभाषिक शब्दों के अंतर के साथ अर्यसाम्य रहते हुए. भी पांच भेद तो बताये हैं पर उन्होंने तीसरे और चौथे भेद का नाम परिवर्तन (पर अर्थसमान) ही नहीं किया अपितु उनका क्रम-परिवर्तन भी किया है। उन्होंने 'परिवर्तना' (स्मरणार्थ पाठ-पुनरावृत्ति) के लिये आम्नाय पद का प्रयोग किया है और उसे स्थानांग 5.220 के विपर्यास में तीसरे के बदले चौथे क्रम पर रखा है। और अनुप्रेक्षा को तीसरे क्रम पर रखा है। यहां प्रश्न यह है कि पाठ के अच्छी तरह स्मरण होने पर (आम्नाय) उसके अर्थ पर चिंतन-मनन (अनुप्रेक्षा) किया जाना चाहिये या चिंतन के बाद स्मरणार्थ: पुनरावृत्ति करनी चाहिये। आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया है कि तार्किक दृष्टि से अच्छी तरह स्मृत पाठ पर ही अच्छा चिंतन हो सकता है। यदि अनुप्रेक्षा का अर्थ वर्गों के उच्चारण के बिना मानसिक अभ्यास लिया जाय, तो भी 'परिवर्तना' या 'आम्नाय' को तीसरे क्रम पर रखा जाना चाहिये। वचन-प्रेरित पुनरावृत्ति मानसिक पुनरावृत्ति या अभ्यास का पूर्ववर्ती चरण मानी जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि उमास्वामी ने यहां भी मन-वचन-काय (धर्मोपदेश) की परंपरा का अनुसरण किया है। यह स्वाध्याय के समान प्रकरण में उपयुक्त नहीं लगता। फलतः यह व्यत्यय भी विचारणीय है। स्वाध्याय के अंतिम भेद का नाम भी दोनों प्रकरणों में भिन्न है, पर अर्थसाम्य के कारण उसे क्रम में ही माना जा सकता है। 4. दर्शनावरणीय कर्म की नौ उत्तर प्रकृतियां
.. स्थानांग 9.14 और प्रज्ञापना, पद 29 में दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों का क्रम निम्न है, निद्रा पंचक और दर्शन-चतुष्क। धवला 6.31 में भी लगभम यही क्रम है। इसके विपर्यास में तत्वार्थ सूत्र और सामान्यतः दिगम्बर परम्पस में यह क्रम दर्शन चतुष्क. एवं निद्रा पंचक के रूप में है। इस क्रम के व्यत्यय का कारण भी अन्वेषणीय है। दर्शन के बाद निद्रा या निद्रा के बाद दर्शन? वस्तुतः यदि दर्शन का सामान्य अर्थ लिया जाय, तो जहां निद्रादि में प्रायः पूर्ण दर्शन का प्रत्यक्ष अभाव होता है या अपूर्ण दर्शन होता है, इसे सामान्य चक्षुदर्शनावरण के भेद के रूप में लेना चाहिये। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से-अधि-दर्शन निद्रा को भी प्रेरित करता है और केंद्रित दर्शन ध्यान को भी