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________________ अनेकान्त / १८ आज का युग बदल रहा है। किसी जमाने मे मन्त्र - तन्त्रादि का प्रभाव बतलाकर जनता को अपने धर्म की ओर आकर्षित किए जाता था। आज की जनता में मन्त्र - तन्त्रादि के प्रति वैसा विश्वास नहीं रहा है, अत किसी धर्म के अनुयायी के दूसरों के प्रति किए गये सुकार्य ही लोगों को उस धर्म की ओर आकर्षित कर सकते हैं । ईसाई मिशनरी की सेवा भावना से ही उनके धर्म के अनुयायियो की संख्या में वृद्धि हुई है. वहाँ जैन धर्मावलम्बियों की सख्या दिनोंदिन कम हो रही है । 'न धर्मो धार्मिकैर्विना ' की उक्ति के अनुसार जब धार्मिक लोग ही नही रहेगे तो धर्म कहाँ रहेगा? समाज के कर्णधारो को समाज की गिरती हुई जनसंख्या की चिन्ता नही है। घटती हुई जनसख्या का कारण अपने ही धर्म के लोगो का धर्म से च्युत होना तथा नए धर्म के अनुयायियों के समावेश का अभाव होना ही है। सामाजिक दृष्टि से जब तक नए लोगो को समान स्थान नही मिलेगा, तब तक समाज की जनसख्या मे कोई वृद्धि होने की आशा नहीं है। जातिवाद की पनपती हुई स्थिति में एक ही धर्म के अनुयायियों मे ही जब समानता का बोध नही है तो वे दूसरो को समान कैसे समझ सकते हैं ? कहाँ तो भगवान् महावीर का विशाल हृदय था कि अपनी सभा मे उन्होने पशु-पक्षियो को भी स्थान दिया और कहाँ हमारा हृदय है कि हम संसार की मानव समाज को भी एक नहीं मानते। हमारा यह सब लिखने का तात्पर्य किसी व्यक्ति विशेष अथवा वर्ग विशेष को चोट पहुँचाना नहीं है, अपितु हम चाहते है कि भगवान् महावीर के धर्म का लाभ सबको मिले और वे सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का उपासक मानने मे गौरव का अनुभव कर सकें । मेरा तो यह दृढ विश्वास है कि जिसकी महान् आचार्य समन्तभद्र मे आस्था है, वह तीन मूढताओ का सेवन कर ही नहीं सकता। यदि करता है तो आचार्य समन्तभद्र के शास्त्रों का उसने मर्म नहीं जाना, यही समझना चाहिए । हमारे धर्म की कसौटी सम्यक्त्व है और सच्चा सम्यक्त्वी कभी सच्चे देव, शास्त्र तथा गुरु के स्थान पर कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरु की आराधना नहीं कर सकता। अध्यक्ष-संस्कृत विभाग वर्द्धमान कॉलेज, बिजनौर
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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