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________________ अनेकान्त/१७ हुआ कि उन मुनि महाराज को वहाँ से निराहार ही प्रस्थान करना पड़ा। इस प्रकार चारित्र और ज्ञान का रथ आज भिन्न-भिन्न दिशाओं की ओर जा रहा है। ज्ञान का उपासक चारित्रधारियों की ओर देखना पसन्द नहीं करता और चारित्र का पोषक आज ज्ञान की बात सुनना पसन्द नहीं करता है। वास्तविकता यह है कि ज्ञान और चारित्र का सुमेल आवश्यक है। शास्त्रकारों ने 'हतो ज्ञानं क्रियाहीनम्' की बात जहाँ की है, वहाँ 'बिन भाव क्रिया सब झूठी' भी कही है। ___ आज की साधारण जनता जिनवाणी के नाम पर जो कुछ भी लिखा गया है, उसे ही सच मान लेती है। भगवान् महावीर का निर्वाण हुए आज २५०० वर्ष से अधिक हो गए हैं। बीच के अन्तराल में जैनियों को जैनेतरों के (विशेषकर दक्षिण भारत में) कठोर प्रतिरोध का सामना करना पडा है। बहुसंख्यक लोगों से तालमेल स्थापित करने के लिए उसने अपनी आचार परम्परा में परिवर्तन भी किए हैं। आज का जैनों का बहुत सारा क्रियाकाण्ड बहुसंख्यक जैनेतर समाज की ही देन है, आत्मप्रधान जैनधर्म के साथ उसकी किसी प्रकार संगति नहीं है। आज उस क्रियाकाण्ड को हमारे कुछ साधुवर्ग ने इतना प्रश्रय दिया है कि आत्मा की बात कुछ . फीकी पड़ गई है। आज का सेठ साधुजनों के समक्ष जाकर परिग्रहपिशाच से छुटकारा पाने का उपाय न पूछकर उनके आशीर्वाद द्वारा अपनी लक्ष्मी की कई गुनी वृद्धि की कामना करता है। कुछ साधुजन भी उसे चोरी तथा ब्लैक मार्केटिंग न करने की सलाह न देकर मन्त्र तन्त्रादि देकर उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करते हैं, ताकि वह आजीवन उनका भक्त बना रहे और उसकी ब्लैक की कमाई का कुछ सदुपयोग धार्मिक कार्यो में भी हो। कहाँ तो साधु के बालाग्र मात्र परिग्रह रखने का निषेध किया गया है और कहाँ साधुजनों का नाम लेकर अटूट सम्पदा एकत्रित करने की प्रवृत्ति व्याप्त हो गई है। ऐसी स्थिति में यदि साधु के प्रति कहीं कुछ छींटाकशी होती है, तो उसे साधु का दोष न मानकर परिग्रह-पिशाच का ही दोष समझना चाहिए और इस ओर प्रत्येक श्रावक और साधु का ध्यान जाना ही चाहिए।
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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