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अनेकान्त/१४ अभाव मे मनिमार्ग भी अन्धकार मे चला जायेगा। नव-तीर्थो के बजाय प्राचीन तीर्थो का बने रहना जहाँ धर्म-परम्परा के लिए आवश्यक है. वहीं साधु संस्था को भी जीवन्त रखने का अप्रतिम साधन है।
दिगम्बर जैन समाज और साधुओं की प्रवृत्तियो से शिक्षा ग्रहण करते हुए आत्मार्थी मुमुक्षुओं द्वारा विशाल स्तर पर श्री आदिनाथ कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन ट्रस्ट, अलीगढ द्वारा मगलायतन नाम से सर्वोदय कल्प आयतन का शिलान्यास हुआ है। चर्चा है कि इससे विधि-विधानों. प्रतिष्ठाओ और अन्यान्य धार्मिक कार्यो के लिए तथा स्वाध्याय के लिए उपयुक्त साधन श्रावको को उपलब्ध होंगे। वैसे अब तक हमने पढा है कि लोक मे चार ही मगलायतन होते है-अरहन्त, सिद्ध, साधु और केवली प्रणीत जिनधर्म। उनके प्रतीक स्वरूप जिनालय, दिगम्बर मुद्राधारी साधु और परम्परित आचार्यो द्वारा रचित पर्याप्त आगम है। ऐसे मे, पृथक रूप से मगलायतन की क्या जरूरत आन पड़ी? सम्भव है अपने प्रचार-प्रसार के निमित्त ही वे ऐसा केन्द्र बना रहे हो, जहाँ से वे अपनी स्वपोषित गतिविधियो को संचालित कर सके। ठीक भी है. जब सारा समाज और साधु इस कार्य को करने में कटिबद्ध हों तब भला मुमुक्षु ही क्यो पीछे रहे? अब तो मुमुक्षु भाइयों को वर्तमान दिगम्बर साधु भी पूज्य लगने लगे है। कल तक उन्हें कोई भी साधु पूज्य नही लगता था, अचानक इस हृदय परिवर्तन में कोई रहस्य भी हो, तो आश्चर्य की बात नहीं। भविष्य ही बतायेगा कि वे समाज को किस दिशा मे उद्वेलित करेगे।
हमारा तो मानना है कि जब तक अनर्थकारी धन के प्रति लोगो में मूर्छा है, तब तक कभी धर्म के नाम पर, कभी विधान के नाम पर तो कभी नव-तीर्थो के नाम पर समाज का इसी प्रकार दोहन होता रहेगा और श्रद्धालु श्रावक मौन रहेगा क्योकि उसका मानना है-जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा रे'। अस्तु, यदि हम दिगम्बर जैन धर्म को जीवन्त रखना चाहते हैं तो हमे परिग्रह के दल-दल में फंसे अपरिग्रही धर्म के चिरमूल्यो को स्थापित करने में प्रवृत्ति करनी होगी।
__ - वीर सेवा मंदिर, दिल्ली