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________________ अनेकान्त / ४ हमारे आदरणीय पूज्य बन गये । महात्मा बुद्ध ने भी घर त्यागा, किन्तु रात्रि के अन्धेरे में क्योकि कही पत्नी उन्हे देख न दे एवं पुत्र मोह न जाग जाये, फिर भी वे जन-मानस के पूज्य बन गये। पर वाह रे महावीर । तुमने जब घर छोडा तो हमेशा के लिए, किसी की आज्ञा से नहीं, अपितु आत्मकल्याण की कामना से, वह भी दिन के उजाले में, माता-पिता और पुरवासियो के समक्ष और फिर पीछे मुड़कर देखा तक नहीं। अतएव वे हमारे आराध्य बन गये 1 1 भगवान् महावीर की आराध्यता जन्म-जन्मान्तर की साधना का प्रतिफल है क्योंकि एक जन्म की साधना से तीर्थकर पद की प्राप्ति संभव नहीं है। भगवान् महावीर जब आद्य तीर्थकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के मरीचि नामक पुत्र के भव मे थे, तभी भगवान् की दिव्यध्वनि से यह पता चल गया था कि मरीचि भविष्य मे इसी अवसर्पिणी काल मे वर्द्धमान नामक अन्तिम तीर्थकर होगा, परन्तु उन्हे अनेक मनुष्य, तिर्यच एवं नरकादि पर्यायो मे परिभ्रमण करना पड़ा। कभी वे अपने पथ से गिर गये तो कभी साधना-शिखर पर चढ गये । मरीचि के पूर्व पुरुरवा भील की पर्याय को तीर्थकर महावीर बनने के क्रम का मंगल प्रभात कहा जा सकता है। इस पर्याय मे उसने मुनिराज से अहिंसाणुव्रत को ग्रहण किया, किन्तु विश्वास, विचार और आचार की सम्यक्ता न रहने से मरीचि के भव मे वह कुतप तपने लगा । जटिल की पर्याय में फिर पतन हो गया। आगे अनेक पर्यायों मे उतार-चढाव झेलते हुए वह सिंह की पर्याय में पुन. उत्थान की ओर अग्रसर हुआ, जब उसने अजितजय मुनिराज का सम्बोधन सुनकर पूर्वकृत कार्यो पर पश्चाताप किया और मांसाहार का त्याग कर सल्लेखना धारण की । देह त्यागकर वह सौधर्म स्वर्ग मे हरिध्वज नामक देव हुआ तथा दशवे भव में साधना का विकास करते-करते तीर्थकर महावीर बना । इस प्रकार महावीर का जीवन क्रूर पशु से परमात्मा बनने की एक अनुकरणीय कहानी है । भगवान् महावीर ने हिंसा, झूठ, चोरी और अब्रह्म ( कुशील) के साथ-साथ परिग्रह को भी पाप मानते हुए इन पांचो को यथाशक्ति त्याग का गृहस्थों
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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