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________________ 58/3 अनेकान्त/64 सिद्धत्व को प्राप्त होते हैं और लोक के अग्रभाग सिद्धशिला पर विराजमान होकर अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य के स्वामी बन जाते हैं फोन नं. : (0542 ) 315323 - जैन दर्शन प्राध्यापक 1 निर्वाण भवन, बी-2/ 249 लेन नं. 14, रवीन्द्रपुरी, वाराणसी-221005 शास्त्र स्वाध्याय का उद्देश्य आत्म स्वरूप की प्राप्ति जो अपने हृदय में 'अहं' मैं रूप में स्वानुभव में आता है, वह तो स्वात्मा है और जो आत्मा राग, द्वेष और मोह से रहित होकर दर्शन-ज्ञान- चारित्र रूप हो जाता है। वह शुद्धात्मा कहलाने लगता है। शुद्ध स्वात्मा की प्राप्ति करते हुए योगी को चार शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं (1) श्रुति, (2) मति, ( 3 ) ध्यान और (4) दृष्टि । इन्हीं चार शक्तियों के आश्रय से योगी योग साधन करते हुए आत्मा के शुद्ध स्वभाव को प्राप्त कर सकता है। सबसे पहली शक्ति है 'श्रुति' । इसके आश्रय से - गुरुवाणी के द्वारा वह घर्म्यध्यान और शुक्लध्यान की ओर प्रवृत्ति करता है। तब 'मति' द्वारा उसकी श्रद्धा परिपक्व होती है, वृद्धि में स्थिरता आती है और श्रद्धा तेजस्वी बनती है । जब आत्मा के शुद्ध स्वभाव में स्थिर मति और अड़िग श्रद्धालु बन जाता है और शुद्ध स्वभाव के अतिरिक्त किसी पर पदार्थ का भाव नहीं होता तो उसकी ध्यान शक्ति प्रकट होती है। इस अवस्था में वह स्व को छोड़कर पर में प्रवृत्ति नहीं करता है । तब उसके 'दृष्टि' विकसित होती है। इससे वह नितान्त अन्तर्मुखी हो जाता है और आत्मा के शुद्ध स्वभाव का अवलोकन करने लगता है। इस अवस्था में पहुँचकर उसके सारे विकल्प नष्ट हो जाते हैं। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए ही सारे शास्त्रों का मन्थन-अध्ययन किया जाता है। वास्तव में शास्त्र स्वाध्याय का परम उद्देश्य आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करना ही है। यदि शास्त्रों के पठन-मनन से विद्वत्ता प्राप्त हो गई और आत्मा के शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति न हुई अथवा शास्त्र पढ़कर भी दृष्टि अन्तर्मुखी न हुई, तो वह सारी विद्वत्ता निरर्थक है । शास्त्र स्वाध्याय का उद्देश्य विवाद करना नहीं हैं, बल्कि उसका यथार्थ उद्देश्य शुद्धात्मा की प्राप्ति करना है । - पं आशाधरजी कृत अध्यात्म रहस्य से
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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