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________________ आचार्य नेमिचन्द्र द्वारा प्रतिपादित पदस्थ ध्यान -डॉ. सूरजमुखी जैन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थो में जीव का चरम लक्ष्य मोक्षपरुषार्थ की सिद्धि है। अर्थ और काम के द्वारा सांसारिक विनश्वर सुख प्राप्त किया जा सकता है, धर्म शाश्वत सुख, मोक्ष का साधक है और मोक्ष साध्य है। अनादिकाल से सम्बद्ध कर्मों से पूर्णतः मुक्त हुए बिना जीव को अनन्त और अविनाशी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। बंध के कारण मिथ्यात्त्व, अविरति, प्रमाद कषाय और योग के अभाव से नये कर्मों के न आने तथा पूर्व समस्त कर्मों की निर्जरा हो जाने पर संपूर्ण कर्मों का आत्मा से पृथक् हो जाना ही मोक्ष है।' मोक्ष-प्राप्ति का उपाय सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की पूर्णता है। आचार्य नेमिचन्द्र ने व्यवहारनय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र को तथा निश्चयनय से इन तीनों स्वरूपों को अपनी आत्मा के ही मोक्ष का कारण कहा है। क्योंकि शुद्ध आत्मा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं रत्नत्रय नहीं रहता है। व्यवहार रत्नत्रय निश्चय रत्नत्रय का साधक है, बिना व्यवहार-रत्नत्रय के निश्चय-रत्नत्रय की साधना नहीं हो सकती है। व्यवहार और निश्चय दोनों ही रलत्रय ध्यान के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं। आचार्य उमास्वामी ने भी तप के द्वारा कर्मों की निर्जरा तथा आभ्यंतर तप ध्यान को निर्जरा का प्रमुख कारण बताया है।' ___ आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल के भेद से ध्यान चार प्रकार का कहा गया है। आर्त और रौद्र ध्यान संसार के कारण हैं, शुक्लध्यान साक्षात् मोक्ष का कारण है और धर्म्यध्यान परम्परा से मोक्ष का कारण है। धर्म्यध्यान, आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय के भेद से चार प्रकार का है। संस्थानविचय धर्म्यध्यान के पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत चार भेद हैं। पिंडस्थ ध्यान में ध्याता मनवचनकाय की शुद्धिपूर्वक एकान्त में खड्गासन या पद्मासन में स्थित होकर अपने शरीर में स्थित निर्मल गुणवाले आत्मा का ध्यान करता है। पदस्थ ध्यान में णमोकार मन्त्र के प्रत्येक पद में नमस्कार करने योग्य पंच परमेष्ठी के गुणों का चिन्तन किया जाता है। रूपस्थ ध्यान में ध्याता किसी भी अरिहन्त की प्रतिमा का
SR No.538053
Book TitleAnekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2000
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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