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________________ अनेकान्त/३ होते हैं। ऐसे पावन क्षेत्र में मूर्तियों की स्थापना का क्या औचित्य है? जहाँ पूरी समाज मिलकर भी 11 अंग 14 पूर्व के धारी-पूज्य श्री गौतम गणधर की मूर्ति रचना की बात नहीं सोच सकी और वह केवल चरण स्थापन कर श्रद्धावनत बनी रही, वहाँ तीस-चौबीसी के साथ-साथ आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज की प्रतिमा का निर्मित्त होना अपूर्व और आश्चर्यजनक कार्य है। यदि साधुओं की मूर्ति-निर्माण का परम्परा या आगम में विधान होता तो पर्वत पर असंख्य कोडा-कोड़ी मुनियों की मूर्तियां होती और वहाँ आज तिल रखने की भी जगह न होती। विडम्बना तो यह है कि मुक्तात्मा गुरुओं की मूर्तियाँ तो बनी नहीं और अब मुनियों की मूर्तियाँ बनायी जा रही हैं। शायद हमारे पूर्वजों ने मुनियों की मूर्तियाँ बनाने और उनकी प्रतिष्ठा कराने का कार्य आजकल के आधुनिक श्रावकों के लिए रख छोड़ा होगा, जिसे पूरा किया जा रहा है। यदि यही सिलसिला चलता रहा तो एक समय ऐसा भी आयेगा जब पूरा पहाड़ मूर्तियों से अटा पड़ा होगा। समाधिस्थल के लोकार्पण की सूचना तो सर्वथा नवीन बात लगी जो पहले कभी न देखी न सुनी गई। अस्तु, जो हो जाय थोड़ा है। इतना ही नहीं, जन्माभिषेक के लिये कूपन सिस्टम के अनुसार 100 रु. मूल्य के सौभाग्यशाली कूपन बेचे जाने की योजना बनी है। जिनके कूपन निकलेंगे, वे कुपन तो भाग्यशाली कहलायेंगे। ऐसे में अभिषेक से वंचित कूपन धारी सौभाग्यशाली कैसे होंगे? क्या कूपन लाटरी का पर्याय नहीं कहलायेगी? क्या इस तरह का कूपन सिस्टम जुआ नहीं है? समाज विचार करे कि सौभाग्यशाली 108 ही क्यों? इसके स्थान पर यदि नियम गृहीता श्रावक को अभिषेक योग्य माना जाता तो अधिक उपयुक्त होता जैसे रात्रिभोजन त्यागी, सप्तव्यसन त्यागी, चर्म निर्मित वस्तुओं का त्यागी, मांसाहार त्यागी, मद्य त्यागी, छना जल सेवन-नित्य देवदर्शन का नियम लेना अभिषेक के लिए अनिवार्य होता तो एक ओर श्रावकों में सद् आचरण के प्रति रुझान बढ़ता तो दूसरी ओर श्रावकों और भावी पंचकल्याणकों के लिए एक आदर्श उपस्थित किया जा सकता था। पैसे के लिए बोली भी बन्द होनी चाहिए। हमारे सेठ बड़े दानी हैं। सुना है पहिले एक ही सेठ समस्त कार्य संपन्न कराता था-फिर अब तो कई सेठ मिलकर आयोजन कराते हैं। फिर पैसे की कमी क्यों? हमें विश्वास है कि प्रतिष्ठापकों और आयोजकों ने इन 720 मूर्तियों के नियमित पूजा-प्रक्षाल की समुचित और ठोस व्यवस्था भी अवश्य ही की होगी। -सम्पादक
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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