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________________ अनेकान्त/३२ कृत निश्चय के समान तुमको देखता हूँ। सिद्धार्थक-भदन्त, कैसे जानते हैं? क्षपणक-श्रावक! इसमें जानने की क्या बात है? यह तुम्हारे मार्ग को बताने में कुशल शकुन और हाथ में विद्यमान लेख सूचित कर रहा है। सिद्धार्थक-भदन्त ने जान लिया। विदेश को जा रहा हूँ। अतः भदन्त बताइये आज का दिन कैसा है? क्षपणक-श्रावक (पहले ही) मुण्डित सिर वाले तुम नक्षत्रों को पूछते हो। सिद्धार्थक-भदन्त, इस समय भी क्या बिगड़ा है? बताओ, यदि जाने के अनुकूल दिन होगा तो जाऊँगा। क्षपणक-श्रावक, इस समय मलयकेतु के शिविर में जाना अनुकूल नहीं होगा। सिद्धार्थक-भदन्त, बताओ यह कैसे? क्षपणक-श्रावक, सुनो। पहले तो इस शिविर में मनुष्य का बिना रोक-टोक के जाना और आना था। सम्प्रति यहाँ से कुसुमपुर के पास आ जाने पर किसी को भी मुद्रा से मुद्रित हुए बाहर जाने अथवा आने के लिए अनुमति नहीं दी जाती है तो यदि भागुरायण की मुद्रा से मुद्रित हो, तब तो निश्चिन्त होकर जाओ, अन्यथा ठहरो (कहीं ऐसा न हो कि) शिविर के अधिकारियों के द्वारा हाथ पैर बाँधे हुए (तुम) राजकुल में प्रवेश न करा दिए जाओ। (आवेग के साथ) सिद्धार्थक (क्या भदन्त) यह नहीं जानते हैं (कि मैं) अमात्य राक्षस के पास रहने वाला हूँ, इसलिए बिना मुद्रा से मुद्रित भी बाहर जाते हुए मुझको रोकने की किसकी शक्ति है? क्षपणक-राक्षस के हो अथवा पिशाच के हो, किन्तु बिना मुद्रा से मुद्रित व्यक्ति का यहाँ से बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं है। सिद्धार्थक-श्रावक जाओ। तुम्हारी कार्यसिद्धि हो। मैं भी भागुरायण से मुद्रा माँगता हूँ। (गूढ़ आशय है कि मैं अभीष्ट प्रयोजन के लिए मुद्रा के बहाने भागुरायण के पास जाऊँगा।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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