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________________ अनेकान्त / ४३ 1 बिहार शरीफ में सन् 1901 में एक जैन मन्दिर लेखक ने स्वयं देखा है जिसके अधिकारी श्वेताम्बर हैं । उसमें एक ओर दिगम्बर वेदिका भी है उसमें जो मूर्तियाँ हैं, उनका दर्शन पूजन दिगम्बर भाई किया करते हैं। बेलगाँव के दोड्ड बसदि नामक जैनमन्दिर में नेमीनाथ तीर्थंकर की एक मूर्ति है। जिसे यापनीय संघ के एक श्रावक ने शक सं. 935 में प्रतिष्ठित कराया था । यह मूर्ति नग्न है और इसे अब दिगम्बर श्रावक ही पूजते हैं । इससे भी अनुमान होता है कि पहले श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्रतिमायें भी नग्न बनाई जाती होंगी। जैन साधुओं के लिए वस्त्रधारण का सर्वथानिषेध यापनीय सम्प्रदाय में भी नहीं था । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के समान स्त्रीमुक्ति और केवलमुक्ति को भी वह मानता था । कुमारपाल प्रतिबोध नामक श्वेताम्बर ग्रन्थ में (जिसे सोमप्रभने वि. सं. 1241 में रचा) खपुटाचार्य की कथा में लिखा है कि " पहले उसने पर्वत के समीप तारा नामक बौद्धदेवी का मन्दिर बनवाया, इस कारण इस तीर्थ को तारापुर कहते हैं । इसके बाद उसी ने फिर वहीं पर सिद्धायिका (जैनदेवी) का मन्दिर बनवाया । परन्तु कालवश उसे दिगम्बरों ने ले लिया। अब वहीं पर ( कुमारपाल राजा कहते हैं) मेरे आदेश से जसदेव के पुत्र दंडाधिप अभय की देखरेख में अजित जिनेन्द्र का ऊँचा मन्दिर बनवाया गया। इससे ज्ञात होता है कि कुमारपाल राजा के समय तक समूचे तारंगा पर या कम से कम सिद्धायिका देवी के मन्दिर पर दिगम्बरों का अधिकार था । भगवती आराधना की विजियोदया टीका मे एक उद्धरण आचार प्रणिधि का है और यह आचार प्रणिधि दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्याय का नाम है । उसमें लिखा है कि पात्र और कम्बल की प्रतिलेखना करना चाहिए कि वे निर्जन्तुक हैं या नहीं? और फिर कहा गया है कि प्रतिलेखन तो तभी की जायेगी, जब पात्र कम्बलादि होंगे, उनके बिना वह कैसे होगी ? सूत्रकृतांग के पुण्डरीक अध्ययन में कहा गया है कि साधु को किसी वस्त्रादि की प्राप्ति के मतलब से धर्मकथा नहीं करनी चाहिए । निशीथसूत्र के दूसरे उद्देश में भी कहा है कि जो भिक्षु वस्त्र, पात्रों को एक साथ ग्रहण
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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