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________________ अनेकान्त/४१ कार्यों में दिगम्बर और श्वेताम्बरों में इतनी विभिन्नता नहीं थी, जितनी कि अब है । इसी कारण इस संघ में श्वेताम्बरों के साथ 1100 दिगम्बर भी गए थे। दोनों में आजकल के समान वैरभाव न था और दिगम्बर- श्वेताम्बरों की मूर्तियों में भी कोई अन्तर नहीं था । यदि अन्तर होता तो वस्तुपाल ने दिगम्बरों के लिए दिगम्बर देवालयों की व्यवस्था की होती और उनकी भी संख्या दी होती । जबकि दोनों के तीर्थ एक थे । एक ही तरह की मूर्तियों को पूजते थे। तब यह स्वाभाविक है कि तीर्थ यात्रा के संघ निकालने वाले दोनों को साथ लेकर चलें । जान पड़ता है कि गिरिनार पर्वत पर दिगम्बरों और श्वेताम्बरों के बीच वह विवाद कभी न कभी हुआ अवश्य है, जिसका उल्लेख धर्म सागर उपाध्याय ने किया है, क्योकि इसका उल्लेख दिगम्बर साहित्य में कुछ दूसरे रूप में मिलता है। नन्दिसंघ की गुर्वावली में लिखा हैपद्मनन्दी गुरुर्जातो बलात्कार गणाग्रणी । पाषाणघटिता येन वादिता श्री सरस्वती ।। 36 ।। ऊर्जयन्तगिरौ तेन - गच्छः सारस्वतोभवेत् ! | अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्री पद्मनन्दिने ।। 37 ।। और भी कई जगह इस घटना का जिक्र है कि गिरनार पर दिगम्बरों और श्वेताम्बरों का शास्त्रार्थ हुआ और उसमें सरस्वती की मूर्ति में से ये शब्द निकलने से कि सत्य मार्ग दिगम्बरों का है, श्वेताम्बर पराजित हो गए। सरस्वती की मूर्ति को वाचाल करने वाले पद्मनन्दी भट्टारक थे। जिनका समय उक्त गुर्वावली में विक्रम संवत् 1385 से 1450 लिखा है । इनके शिष्य शुभचन्द्र और प्रशिष्य जिनचन्द्र थे 1 श्वेताम्बर ग्रन्थों में यही घटना इस रूप में वर्णित है कि अम्बिका देवी ने श्वेताम्बरों की जीत यह कहकर कराई कि जिस मार्ग में स्त्री को मोक्ष माना है, वही सच्चा है। जीत चाहे जिसकी हुई हो - परन्तु मालूम होता है कि उक्त विवाद हुआ था और उसी समय से दिगम्बरों और श्वेताम्बरों में विद्वेष का बीज विशेष रूप से बोया गया, जिससे आगे चलकर बड़े-बड़े विषमय फल उत्पन्न हुए । मुगल बादशाह अकबर के समय में हीरविजय नाम के एक सुप्रसिद्ध साधु
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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