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अनेकान्त/४०
उनके 7 पुत्र, 700 योद्धा, 1300 गाड़ियाँ और 13 करोड़ अशर्फियाँ थीं। वे शत्रुजय की यात्रा करके जब गिरनार की यात्रा को गए, जो कि 50 वर्ष से दिगम्बरों के अधिकार में था, तब उन्हें खेजार नामक किलेदार से लड़ना पड़ा
और उसमें उनके सातों पुत्र और योद्धा मारे गए। उसी समय उन्होंने सुना कि गोपगिरि (ग्वालियर) के राजा आम हैं और उन्हें वप्पभट्टि ने प्रतिबोधित कर रखा है, तब वे ग्वालियर आए। उस समय वप्पभट्टि का व्याख्यान हो रहा था। स्वयं राजा और आठ श्रावक बैठे सुन रहे थे। धाराक ने दिगम्बराधिकृत गिरनार तीर्थ की हालत सुनायी। गुरु ने भी तीर्थ की महिमा का वर्णन किया। इस पर आम राजा यह प्रतिज्ञा कर बैठे कि गिरनार के नेमिनाथ की वन्दना किए बिना मैं भोजन ग्रहण नहीं करूँगा। एक हजार श्रावकों ने भी यही प्रतिज्ञा की। तब राजा एक बड़े भारी संघ के साथ चल पड़े। बत्तीस उपवास करके स्तम्भ तीर्थ अर्थात् खम्भात पहुँचे। राजा का शरीर बहुत खिन्न हो गया था। यह देखकर गुरु ने अम्बिका को बुलाया और उसके द्वारा अपापमठ से एक प्रतिमा मँगवा ली और उसका दर्शन करके राजा प्रतिज्ञा मुक्त हो गए। इसके बाद एक माह तक दिगम्बरों से विवाद हुआ और अन्त में अम्बिका ने 'ऊर्जिति सेलसिहरे' आदि गाथा कहकर विवाद की समाप्ति कर दी। (गाथा में यह कहा गया है कि जो स्त्रियों की मुक्ति मानता है, वही सच्चा जैन मार्ग है और उसी का यह तीर्थ है) इस तरह तीर्थ लेकर दिगम्बर श्वेताम्बरों की प्रतिमाओं में नग्नावस्था और अञ्चलिका का भेद कर दिया।
उक्त अवतरण से दो बातें मालूम होती हैं। एक तो यह कि पहले दोनों की प्रतिमाओं में कोई भेद नहीं था और दूसरी यह कि इस घटना से पहले गिरनार पर 50 वर्ष से दिगम्बरों को अधिकार था।1
इसी उपदेशतरंगिणी (पृ. 246) में वस्तुपालमंत्री के संघ का वर्णन है, जो उन्होंने सं. 1285 में निकाला था। उसमें 24 दन्तमय देवालय, 120 काष्ट देवालय, 4500 गाड़ियाँ, 1800 डोलियाँ, 700 सुखासन, 500 पालकियाँ, 700 आचार्य, 2000 श्वेताम्बर साधु, 1900 दिगम्बर 1900 श्रीकरी (2) 4000 घोड़े, 2000 ऊँट और 7 लाख मनुष्य थे। यद्यपि यह वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण है, तो भी इससे यह मालूम होता है कि उस समय तीर्थयात्री, पूजनार्चा आदि