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________________ अनेकान्त/१३ " अनेकान्त" के प्रति मुख्तार साहब की निष्ठा के बारे में हम जितना भी कहेंगे, वह थोड़ा ही होगा। उसकी प्रवेशांक में महावीर संबंधी लेख के बाद अनेकान्त पर विस्तृत सामग्री उन्होंने प्रकाशित की है । अनेकान्त - पत्रिका का प्रवेशांक निश्चित ही एक ऐसा बहुमूल्य और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है जो मुख्तार साहब की समग्र भावनाओं और संकल्पों को अधिकृत रूप से रूपायित करता है। अनेकान्त: साध्य भी और साधन भी अनेकान्त विद्या पर मुख्तार साहब ने बहुत गम्भीरतापूर्वक और गहराई से विचार किया था । यह अकारण नहीं था कि उन्होंने अपनी पत्रिका का नाम “ अनेकान्त" रखा। उसके पीछे उनके मन की आस्था थी जो अनेकान्त को जीवन-निर्माण की संहिता के रूप में स्वीकार कर रही थी । उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि - " चिन्तन प्रधान तपस्या ने भगवान महावीर को अनेकान्त दृष्टि सुझाई। उनका “सत्य-शोधन” का संकल्प पूरा हुआ और उन्होंने उस अनेकाप्तदृष्टि की चाबी से वैयक्तिक और समष्टिगत जीवन की व्यावहारिक और पारमार्थिक समस्याओं के ताले खोलकर उनका समाधान प्राप्त किया। उनकी अनेकान्तदृष्टि की शर्ते इस प्रकार हैं १. राग और द्वेषजन्य संस्कारों के वशीभूत नहीं होना, अर्थात् तेजस्वी २. माध्यस्थ-भाव रखना । जब तक मध्यस्थभाव का पूर्ण विकास न हो, तब तक उस लक्ष्य की ओर ध्यान रखकर केवल सत्य की जिज्ञासा रखना । ३. कैसे भी विरोधी भासमान पक्ष से कभी घबराना नहीं। अपने पक्ष की तरह उस पक्ष पर भी आदरपूर्वक विचार करना और अपने पक्ष पर भी विरोधी पक्ष की तरह तीव्र समालोचक दृष्टि रखना । ४. अपने तथा दूसरों के अनुभवों में से जो-जो अंश ठीक जचें, चाहे वे विरोधी के ही क्यों न प्रतीत हों, उन सबका विवेक- प्रज्ञा से समन्वय करने की उदारता का अभ्यास करना और अनुभव बढ़ने पर, पूर्व के समन्वय में जहां गलती मालूम हो वहीं, मिथ्याभिमान छोड़कर सुधार करना और इसी क्रम से आगे बढ़ना । - अनेकान्त प्रवेशांक पृ. 21
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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