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________________ दिगम्बरत्व के विषय में नाथूराम प्रेमी का लेख ___ क्या कभी कोई तीर्थस्थान मात्र इसलिए किसी सम्प्रदाय विशेष का हो जाता है कि उस तीर्थ पर अभिषेक अथवा माला की अधिक बोली उस सम्प्रदाय ने लगायी है? अतीत में दिगम्बर जैन तीर्थों के प्रति ऐसी ही घटनाओं के आधार पर शृंगारी मूर्ति-पूजक समाज ने कई तीर्थ अपने अधिकार में करने की कुचेष्टा की है। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ नाथूराम जी प्रेमी के इस लेख में मूर्ति-पूजक समाज के ग्रन्थों के साक्ष्य के आधार पर उस तथ्य की पुष्टि की गई है। डॉ. रमेशचन्द जैन ने भी 'दिगम्बरत्व की खोज' नामक पुस्तक में लेख का संकलन कर यह सोचने पर विवश किया है कि दिगम्बर जैन समाज की उदासीनता के कारण समाज को कितनी क्षति उठानी पड़ी है। इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए यह आवश्यक है कि विद्वत् समाज इस दिशा में गहन चिन्तन एवं विचार-विमर्श कर, समाज को वस्तुस्थिति से अवगत कराये ताकि समाज की सुप्त चेतना जागृत हो और तीर्थो के मूल स्वरूप की रक्षा हो सके -सम्पादक पहले तीर्थो पर तीर्थकरों या सिद्धों के चरणों की पूजा होती थी और ये चरण दोनों को समान रूप से पूज्य थे। प्राचीन काल में दिगम्बर और श्वेताम्बर प्रतिमाओं में कोई भेद न था। प्रायः दोनों ही नग्न प्रतिमाओं को पूजते थे। मथुरा के कंकाली टीले में लगभग दो हजार वर्ष की प्राचीन प्रतिमायें मिली हैं, वे नग्न हैं और उन पर जो लेख हैं, वे कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार हैं। इसके सिवा 17 वीं सदी में पं. धर्मसागर उपाध्याय ने अपने प्रवचन परीक्षा नामक ग्रन्थ में लिखा है कि गिरनार और शत्रुजय पर एक समय दोनों साम्राज्यों में झगड़ा हुआ और उसमें शासन देवता की कृपा से दिगम्बरों की पराजय हई। अब इन दोनों तीर्थो पर श्वेताम्बर सम्प्रदाय का
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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