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________________ अनेकान्त/३५ उदय से करना ही पड़ते हैं। यह किसकी महिमा है। द्रव्यानुयोग कहता है कि आत्मा चेतन प्राण से जीता है जब करणानुयोग कहता है कि आत्मा चार प्राणों से जीता हैं द्रव्यानुयोग कहता है कि आत्मा खाता नहीं तब करणानुयोग कहता है आत्मा खाता है। द्रव्यानयोग कहता है आत्मा अमूर्तिक है तब करणानुयोग कहता है कि आत्मा मूर्तिक है। यदि मूर्तिक नहीं होता तो आत्मा को सुई लगना नहीं चाहिए। द्रव्यानुयोग कहता है कि आत्मा असंख्यातप्रदेशी है जबकि करणानुयोग कहता है कि आत्मा स्वदेह प्रमाण है द्रव्यानुयोग कहता है कि आत्मा ज्ञान से देखता है तब करणानुयोग कहता है आत्मा इन्द्रियों से देखता है। ज्ञान का क्षयोपशम होते हुए भी इन्द्रिय बिना कैसे देखेगा। करणानुयोग कहता है कि ज्ञान चेतना चौथे गुणस्थान से स्वीकार करता है जबकि द्रव्यानुयोग चेतना तेरहवें गुणस्थान से स्वीकार करता है। द्रव्यानुयोग - इस अनुयोग में प्रधान रूप से आत्मा की ओर से ही उपदेश दिया जाता है जो यथार्थ ही उपदेश हैं इस उपदेश द्वारा ही आत्मा विशेष कर अपने कल्याण के मार्ग को समझ सकता है। इस अनुयोग में उपचार से कथन नहीं किया जाता। जिस कारण से आत्मा दुखी है वही यथार्थ कारण कहा जाता है आत्मा अपने ही कारण से सुखी होता है। आत्मा को सुखी-दुखी करने वाला अन्य कारण संसार में नहीं है। अर्हत देव निग्रंथ गुरु आदि कोई भी पद आत्मा का कल्याण नहीं कर सकता है। आत्मा का शत्रु मित्र स्वयं आत्मा ही है। जैसे पेट में दर्द होने से चरणानुयोग कहेगा कि दाल खाने से पेट में दर्द होता है परन्तु चौके में दाल तो सबने खाई हैं यदि दाल से दर्द होवे तो सबको दर्द होना चाहिए। करणानुयोग कहता है कि दर्द तो मात्र असाता के उदय से हुआ है इसी प्रकार द्रव्यानयोग कहता है कि महान् असाता का उदय सुकौशल एवं गजकुमार मुनि को होते हुए भी उन्होंने आत्मा की शांति एवं केवलज्ञान की प्राप्ति की। उससे असाता का उदय पेट में दर्द होने का कारण नहीं है, परन्तु अपना राग ही मात्र दुःख का कारण है। इसी प्रकार तीनों अनुयोग अपने-अपने पद में रहकर कथन करते हैं। तो भी तीनों अनुयोग एक-दूसरे अनुयोग का निषेध नहीं करते यदि निषेध करते हैं तो एकांत कथन करने से स्वयं मिथ्यात्व आ जाता है।
SR No.538052
Book TitleAnekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1999
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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