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अनेकान्त/७
है। आज बड़े-बड़े विद्वान और सेठ, साहूकार भी इसका कड़वा चूंट पीते चले जा रहे हैं। उनके लिये हमारा विशेष रूप से निवेदन है यदि वे नेता (समाज के) जैन-समाज के दूषण को समाप्त करने के लिये इस कार्य में भाग लें और मिटाने के लिये संकल्प कर लें तो जैन-समाज का वे बड़ा काम कर देंगे। ___ समाज के नेता लोगों को अब इस ओर काम करना चाहिये। हमारे यहाँ श्रीमान् बहुत हैं, लेकिन स्वाध्यायशील नहीं हैं। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा है, महासमिति हैं और अन्य संस्थाएँ भी हैं। ये हमारे सामने समस्या लेकर तो आ जाते हैं किन्तु जब हम शास्त्रोक्त पद्धति से कहते हैं तो उसके लिये आनाकानी कर देते हैं। एक समय ऐसा आ सकता है, जब इन्हें बहुत पश्चाताप करना पड़ेगा। इस संबंध में एकान्त में भी कहा, सुना तो, लेकिन इन लोगों ने इस बात को (हमारी बात को) स्वीकारा नहीं। या तो बात सुन ली या कुछ सामाजिक समस्याओं का बहाना कर आनाकानी कर दी। आज समाज के सामने मैं संदेह का कारण बन चुका हूँ। आप क्यों नहीं बोलते हैं? हमारे पास खुले पत्र आते हैं : 'क्यों महाराज ! आप इस बारे में बोलते क्यों नहीं हैं ? संभव है आप ख्याति, पूजा के चक्कर में हैं।' अनेक ऐसे श्रीमान् (समाज प्रमुख) जानते हुए भी इस दूषण को दूर करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। भट्टारकों की इस प्रकार की परंपरा आगामोक्त अनुसार नहीं है। जैन-साहित्य में इस चर्या के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। उस चर्या का बड़े-बड़े सेठ, साहूकार आँख मीचकर समर्थन कर रहे हैं। उनके कारण महान् कुंदकुंद-साहित्य को एक प्रकार से धक्का लग रहा है। आचार्य शांतिसागरजी महाराज, आचार्य समंतभद्र महाराज तथा और भी अनेक आचार्य हुए हैं। उन्होंने भी इस परंपरा को आगमोक्त नहीं माना। किंतु कई सेठ, साहूकारों ने इसे आगमोक्त कहते हुए इसका समर्थन किया है। इस (भट्टारक) परंपरा को निश्चित रूप से बंद कर देना चाहिये। समाज की निष्क्रियता का परिणाम यह हुआ है कि वर्तमान में उत्तर भारत में मुनियों को भट्टारक परंपरा बनाने और उसे विशेष रूप से प्रोत्साहित करने का कार्य किया जा रहा है। मेरे सामने यह समस्या आयी तो मैंने कहा इसका समर्थन करने वाले कौन हैं ? तब पता चला दक्षिण के भट्टारकों ने दिगम्बर मुनि महाराज को भट्टारक बनाने का एक बीड़ा उठाया है। उनके समर्थक जो कोई भी