________________
महाकवि रविषेण और कालिदास
--डॉ. रमेशचन्द्र जैन
‘पद्मचरित' नामक सुप्रसिद्ध काव्यग्रन्थ के प्रणेता महाकवि रविषेण की काव्य-प्रतिभा अनुपम है। कवि की रचना के सांगोपांग अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि वह अपने पूर्ववर्ती कवियों की काव्य-रचनाओ से प्रभावित रहा। उसने कालिदास के ग्रन्थों का भली-भाँति अध्ययन किया था। ‘पद्मचरित' में वर्णित कतिपय प्रसग रविषेण पर कालिदास के प्रभाव को द्योतित करते है।
'रघुवंश' में, इन्दुमती-स्वयंवर के प्रसंग में कहा गया है कि स्वयंवर में उपस्थित भूपालों को छोड़कर इन्दुमती जब आगे बढ जाती है, तब वे राजमार्ग पर दीपशिखा के द्वारा छोडे गये महलो के समान विवर्ण प्रतीत होते हैं । यहाँ राजाओ की विषण्णता तथा उदासी की अभिव्यक्ति कवि-प्रयुक्त 'दीपशिखा' उपमा द्वारा बडी सुन्दरता से की गई है ।
सञ्चारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा। नरेन्द्रमार्गाट्ट इव प्रपेदे विवर्णभावं स स भूमिपालः।।
(रघुवंश, ६/६७) इसी उपमा के प्रायोगिक सौन्दर्य के कारण महाकवि कालिदास 'दीपशिखा-कालिदास' के नाम से प्रसिद्ध हैं। रविषेणाचार्य ने स्वयंवर के ही प्रसंग में दीपशिखा के स्थान पर चन्द्रलेखा तथा महल के स्थान पर पर्वत की उपमा दी है ।
ततोऽसौ चन्द्रलेखेव व्यतीता यान्नभश्चरान्। पर्वता इव ते प्राप्ताः श्यामतां लोकवाहिनः।। (पद्मचरित, ६/४२३)
जिस प्रकार, चन्द्रप्रभा जिन पर्वतों को छोडकर आगे बढ़ जाती है, वे पर्वत अन्धकार से मलिन हो जाते हैं, उसी प्रकार कन्या श्रीमती जिन