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अनेकान्त/१५
पुरुषार्थ और साहस
श्रमण सांस्कृतिक परम्परानुसार मुख्तार सा को जिन-शासन के प्रभावक आचार्यों में जिस महिमामण्डित आचार्य ने सर्वाधिक प्रभावित किया था वे थे महान् तार्किक आचार्य समन्तभद्र। आचार्य समन्तभद्र की कृतियों पर तथ्य और आगम के परिप्रेक्ष्य में जिस गम्भीरता के साथ उन्होंने चिन्तन-मनन और व्याख्याये प्रस्तुत की हैं, वह आज भी अनुसन्धित्सुओं के लिए प्रेरक और साहस का अनुकरण करते हुए ही उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया और साहित्य साधना में अनवरत लीन रहे।
आजकल तो शीघ्रातिशीघ्र प्रतिफल की प्रत्याशा में साहस का स्थान चापलूसी ने और पुरुषार्थ का स्थान तिकड़म ने ले लिया है। फलतः नाना उपाधियों और पुरस्कारो की प्राप्ति की होड में पुरुषार्थ-जन्य प्रतिफल का प्रायः अभाव देखा जाता है परिणामस्वरूप उनकी साहित्य साधना का प्रभाव अत्यल्प होता है जबकि मुख्तार सा. के सम्पर्क में आए व्यक्तियों पर उनकी कर्मठता-साहस और पुरुषार्थमय साहित्य साधना का चिरन्तन प्रभाव परिलक्षित हुआ था। अतीत की गौरवशाली परम्परा के सशक्त हस्ताक्षरों में से पूज्य श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी, पं. नाथूराम जी प्रेमी, सूरजभानु जी वकील, ब्र. प. चन्दाबाई जी, श्री बाबू राजकृष्ण, दिल्ली आदि प्रमुख व्यक्तित्व को जिन पर मुख्तार सा. के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का स्थायी प्रभाव पड़ा था। वर्तमान पीढ़ी भी उनकी साहित्य साधना से अभिभूत है। अन्तर है तो बस यही कि पुरानी पीढ़ी अनुकरण और अनुसरण का प्रयास करती थी जबकि वर्तमान पीढ़ी प्रशंसात्मक गुणस्तुति कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है।
साहस और पुरुषार्थ के प्रतीक मुख्तार सा. ने पहले सरसावा में और बाद में दिल्ली में वीर सेवा मन्दिर की स्थापना की और उसके सोद्देश्य सफल संचालन में आजीवन जुटे रहे तथा परम्परया प. पद्मचन्द शास्त्री ने उनका अनुकरण करते हुए जिस साहस और पुरुषार्थ का