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________________ अनेकान्त, १२ के मध्य धार्मिक अनुचिन्तन की फलश्रुति थी। सामाजिक जीवन मे यथार्थ अन्तर्विरोधो को उजागर करता कविहृदय 'समताभाव' की सर्वोदयी भावना अभिव्यक्त करता है। यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी के आलोक मे मुख्तार सा ने सामाजिक चिन्तनधारा को धार्मिक धरातल से जोडने मे सेतुबन्ध का कार्य किया है। इतना ही नही, धार्मिक धरातल पर फैली अनेक विसंगतियो पर इतनी गहरी चोट की थी कि तत्कालीन धर्मान्ध रूढिग्रस्त सामाजिको मे रोष व्याप्त हो गया था लेकिन उन्होंने उसका सामना आगमनिष्ट तार्किक दृष्टि से किया। अपनी सत्यान्वेषणपरक दृष्टि और तज्जन्य अवधारणाओ से उन्हें कोई कभी भी विचलित नही कर सका। आचार्य समन्तभद्र की बहुमूल्यवान् कृति 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' पर भाष्य स्वरूप ‘समीचीन धर्मशास्त्र' के रूप मे प्रकाशन हुआ तो अनेक परम्परागत विद्वानो और साधुवर्ग ने नाम परिवर्तन को लेकर अनेक आरोप-प्रत्यारोप किए, परन्तु वे अडोल और अकम्प बने रहे। स्वातन्त्र्योत्तर काल की चतुर्दिक आर्थिक, भौतिक प्रगति ने भारतीय सामाजिक परिवेश को जिस द्रुतगति से प्रभावित किया है, उससे आज सभी परम्पराएँ हतप्रभ है। श्रमण सास्कृतिक परम्परा भी देश की आर्थिक राजनीतिक एव नैतिक अध पतन की दिशा की ओर अभिमुख है जिससे सभी मे चिन्ता व्याप्त है। मुख्तार सा ने तो आ समन्तभद्र के रत्नकरण्ड श्रावकाचार के 'देशयामि समीचीन धर्म कर्म निबर्हणम्' को आधार बनाकर उपर्युक्त नाम रखा था, परन्तु आजकल किसने मेरे ख्याल मे दीपक जला दिया' 'वो लडकी' जैसी कृतियाँ धार्मिक कृति के रूप मे घर-घर पहुंचाने का उपक्रम किया जा रहा है। भगवान महावीर तथा परवर्ती आचार्यों के नाम पर गुरु-शिष्य परम्परा से यद्वा तद्वा प्रतिष्ठापन का कार्य चल रहा है। इसे कालदोष की सज्ञा दी जाए या विचारशून्यता अथवा निहित स्वार्थान्ध वृत्ति का सूचक माना जाए। यह चिन्तनीय है।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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