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________________ अनेकान्त/१० अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ -प्रो० डॉ० लाल चन्द जैन भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेईसवे तीर्थकर के रूप मे प्रसिद्ध है। भारतीय दार्शनिको, विशेषकर डॉ० राधाकृष्णन, एस० एन० दास गुप्ता, एम० हिरिमन्ना, डॉ० एन० के० देवराज, चक्रधर शर्मा, पारसनाथ द्विवेदी, ने सार्वभौमिक और त्रिकालिक सत्तावान महापुरुष मानकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है। इनमे से कतिपय मनीषियो के विचार प्रस्तुत है। डॉ० राधाकृष्णन की मान्यता है कि “पार्श्वनाथ ईसा से ७७६ वर्ष पूर्व मृत्यु को प्राप्त हुए थे” एस० एन० दास गुप्ता ने भारतीय दर्शन के इतिहास मे लिखा है कि “भगवान महावीर के पूर्ववर्ती पार्श्व, जो अतिम से पहले तीर्थकर थे, महावीर से कोई ढाई सौ वर्ष पूर्व मृत्यु को प्राप्त हुए कहे जाते है। उत्तराध्ययन सूत्र से सूचित होता है कि पार्श्व सम्भवत एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। एम० हिरियन्ना ने पार्श्वनाथ के सम्बन्ध मे अपने विचार प्रगट करते हुए कहा है कि “इनमे से पार्श्वनाथ को, जो वर्धमान से पहले हुए थे और जिन्हे आठवी शताब्दी ई० पू० का माना जाता है, एक ऐतिहासिक पुरुष माना जा सकता है। इस बात के प्रमाण है कि उनके अनुयायी वर्धमान के समकालीन थे।" चक्रधर शर्मा के विचार है कि “तेइसवे तीर्थकर पारसनाथ नि सन्देह ऐतिहासिक व्यक्ति थे जो आठवी या नौवी शती ई० पू० हुए थे।” पारसनाथ द्विवेदी ने भारतीय दर्शन मे लिखा है कि "तेईसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष थे। इनका जन्म महावीर से लगभग २४० वर्ष पूर्व ईसवी सन के आठ सौ वर्ष पूर्व वाराणसी के राजा अश्वपति के यहाँ हुआ था। ३० वर्ष की अवस्था मे राजसी वैभव का परित्याग कर सन्यास ले लिया और घोर तपस्या की । ७० वर्ष तक जैन धर्म का प्रचार किया। चार महाव्रत, अहिसा, सत्य, अनस्तेय और अपरिग्रह पर विशेष जोर दिया।"
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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