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________________ अनेकान्त/११ आधुनिक भारतीय दर्शनिको के उपर्युक्त उद्गारो से सिद्ध है कि भगवान पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक महापुरुष है। इनके ऐतिहासिक महापुरुष मानने का कारण यह है कि हमारे शास्त्रो में भगवान पार्श्वनाथ के पूर्ववर्ती तीर्थकरो की तरह इनके जन्मादि का कल्पनातीत सख्या मे वर्णन नही किया गया है। आचार्य यतिवृषम, गुणभद्र प्रभृति ने बुद्धिग्राहय सख्या मे पार्श्वनाथ के सबध मे कथन किया है। जैसे यतिवृषभ ने कहा है कि भगवान नेमिनाथ के जन्म के ८४ हजार ६४० वर्ष बीतने के पश्चात् भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था, और पार्श्वनाथ के उत्पन्न होने के २७८ वर्ष बीतने के बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था एव इनकी आयु २०० वर्ष की थी ये १ हाथ प्रमाण शरीर वाले थे। भारतीय विद्वानो की तरह पाश्चात्य मनीषियो ने भी भगवान पार्श्वनाथ को महापुरुष मानकर उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध की है। इस सम्बन्ध मे प्रो० प्रफुल्ल कुमार मोदी का कथन है कि “पार्श्वनाथ के जीवन की इन्ही घटनाओ को सामने रखकर विद्वानो ने पार्श्वनाथ के सबध मे अन्वेषण कार्य किया है। जिसके फलस्वरूप अब यह निश्चित है कि पार्श्वनाथ एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। यह सिद्ध करने का श्रेय जेकोबी को है। उन्होने एस० बी० इ० के ४५ वे ग्रन्थ की भूमिका के ३१ से ३४वे पृष्ठो पर इस सबध मे कुछ सबल प्रमाण दिये है, जिनके कारण इस सबध मे अब किसी विद्वान को शका नही रह गई है। डॉ० जेकोबी के अतिरिक्त अन्य विद्वानो ने भी इस विषय मे खोजबीन की है और अपना मत प्रस्तुत किया है। इन विद्वानो मे से प्रमुख है कौलबुक, स्टीवेन्सन, एडवर्ड टामस, डॉ० बेलवेकर, दास गुप्ता, डॉ० राधाकृष्णन, शान्टियर, गेरीनोट, मजुमदार, ईलियट तथा पुसिन ।” इस प्रकार इतिहास प्रसिद्ध और विराट व्यक्तित्व के महार्णव भगवान पार्श्वनाथ की जीवनगाथा विभिन्न कालो मे विभिन्न भाषाओ मे रच कर मनीषी चिन्तको ने अपनी श्रद्धा प्रकट की है। पार्श्वनाथ के जीवन से आकर्षित होकर अपभ्रश भाषा मे विक्रम की दशवी शताब्दी से लेकर सोलहवी शताब्दी तक पुराण, काव्य, स्तोत्र आदि लिखे जाते रहे। इनके लेखको मे से आचार्य पुष्पदन्त, देवदत्त, सागरदत्त, आ० पद्मकीर्ति, विवध श्रीधर देवचन्द्र, रइधु, असवाल, तेजपाल और सागरदत्तसूरि के नाम उल्लेखनीय है । पार्श्वनाथ के सबध मे इनकी कृतियो मे महत्वपूर्ण तथ्यो का उल्लेख किया गया जिससे उनकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। इसलिए उक्त ग्रथकारो के ग्रन्थो का सक्षिप्त आलोडन करना आवश्यक है।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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