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________________ अनेकान्त/३१ है।१ कमलश्री ग्रहबाधा से पीड़ित थी, जिसे हेलाचार्य (ऐलाचार्य) ने नीलगिरि शिखर पर ज्वालामालिनी देवी की आराधना से मत्र प्राप्त करके दूर किया था। विद्यानुशासन इसके कर्ता जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण सूरि है। ये बड़े मत्रवादी थे। महापुराण मे इन्होने स्वय को “गारुड़मत्रवादवेदी” लिखा है। विद्यानुशासन मत्रशास्त्र का सबसे बड़ा ग्रन्थ है। इसमे चौबीस अधिकार तथा पाँच हजार मंत्र है।१२ इसमे लगभग सात हजार श्लोक है। एच०आर० कापडिया ने इसे सग्रह ग्रन्थ कहा है। इसमे मलिषेण सूरि के अन्य ग्रन्थो का अधिकाश भाग पाया जाता है, इसलिए उनके द्वारा रचित कहा जाता है। इसका उल्लेख जिनरत्न कोष पृ ३५५ पर हुआ है। इसका रचनाकाल विक्रम सं० १११० के आस-पास है। भैरवपद्मावती कल्प यह भी मल्लिषेण सूरि की रचना है। ग्रन्थ के पुष्पिका वाक्य मे इन्हे “उभयभाषा कविशेखर कहा गया है। ग्रन्थकार ने ग्रन्थ की श्लोक सख्या चार सौ (१०/५६) लिखी है, किन्तु प्रकाशित सस्करण मे यह सख्या ३०८ है। इस पर बन्धुषेण की सस्कृत टीका है। यह ग्रन्थ प्रो० के०वी० अभयंकर द्वारा सम्पादित तथा साराभाई मणिलाल नवाब के गुजराती अनुवाद के साथ सन् १९३७ मे अहमदाबाद से प्रकाशित है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ जैन सिद्धान्त भवन, आरा मे सग्रहीत है।'४ ग्रन्थकार तथा टीकाकार दोनो ने सर्वप्रथम पार्श्वनाथ को नमन किया है ग्रन्थ दश अधिकारो मे विभाजित है। (१/१५) पहले मन्त्रिलक्षण नामक अधिकार मे साधक की योग्यता का निरूपण है। दूसरे सकलीकरण अधिकार मे अगन्यास, दिग्बन्धन, ध्यान, अमृतस्नान आदि के विषय मे बतलाया गया है। ध्यान के लिए पद्मावती की जिस मुद्रा का अकन किया गया है, वैसे लक्षणों से युक्त पद्मावती की प्रतिमा ईडर के एक जैन मन्दिर में बतायी गई है। तीसरे देव्यर्चनाधिकार मे शान्तिकादि
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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