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________________ अनेकान्त/२३ और हां क्यो कहते हैं उनको तीर्थकर जो कर्ता-धर्ता नही है, शादिया रचाते है या अकेले रहते है राज करते है, ठाठ से रहते है, निरा उपदेश करते है और उनको आप फिर भी कहते है यही है हमारे भगवान, क्या है यह सब? और ये पण्डित लोग जो कहते है हम प्राकृत सस्कृत व्याकरण के जानकार हैं, मंचों से पत्रिकाओं से तरह तरह की तकरीरे कर रहे है जो शायद उनके अलावा कोई नही समझ पाता, क्या है यह सब? क्या है यह झगड़ा किसी पहाड़ का, कुछ मदिरों का जिनको लेकर आप झगड़ रहे हैं-अदालतों में भागे जा रहे है पूजा कौन करेगा, कौन इन्तजाम करेगा इस बात को तय कराने के लिए क्या है यह सब? क्या है यह सब? हाँ, इन सबका जवाब है जो शायद आप के गले उतर जाए । कई कई सालो पहले हुए थे एक महापुरुष, उनके पहले भी हो चुके थे ऐसे कई लोग मगर उनके बारे में हम नहीं जानते, हॉ इनके बारे में कुछ जानते हैं-सहूलियत के लिए इनको हम कह ले कि ये हैं हमारे आदिनाथ । इन आदिनाथ ने चलाया है सबसे पहले यह सब सिलसिला जिसे देखकर आप हैरान है और कर रहे ये सब सवाल । उनके पीछे ऐसे २३ और आए जिनमें से अतिम थे जिनको बुद्ध ने कहा 'नाथपुत्र' किन्तु हमने उनको कहा वीर, अतिवीर, महावीर एक और अच्छा नाम है उनका सन्मति । उनके जमाने मे वेदो के नाम पर यज्ञों की आग में जानवर झोके जाते थे-इस महापुरुष ने इसका विरोध किया और कहा कि अकल से काम लो, कुछ तो रहम लाओ दिलो मे, बहुत विरोध हुआ इस विरोध का मगर अंत में सबको सन्मति मिली । यह है कोई २५२५ साल पहले की बात । उनके इस सिलसिले को आगे बढ़ाया कुछ संतो ने जिन्हें हमने नाम दिया आचार्य और अब उस जंजीर की अंतिम कड़ी हैं ये लोग जिन्हें हम पण्डित कहते हैं। मगर इन आचार्यों और पण्डितों की मत सुनिए-मैं समझाता हूँ आपको चद शब्दों में कि इस सबका राज क्या है-मत पड़िए तीर्थंकर, साधु, पंडित, शास्त्र, मंदिर, पूजा-पाठ, पहाड़, मत्र-तंत्र, जुलूस, प्रवचनों के झमेले में।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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