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________________ अनेकान्त/१० विद्वान् लेखक के अनुसार उक्त उद्धरण प्रशमरतिप्रकरण का है। अत. इस प्रकरण को समझने के लिए प्रशमरतिप्रकरण का अध्ययन आवश्यक प्रशमरतिप्रकरण प्रशमरतिप्रकरण आचार्य उमास्वाति की रचना कही गई है, जिसमे २२ अधिकार है और सब अधिकारो की लगातार श्लोक सख्या ३१३ है। सब अधिकारो की पृथक पृथक श्लोक सख्या नही है। विद्वान् लेखक ने 'नग्न श्रमणक दुर्बुद्धे इस वाक्य को प्रशमरतिप्रकरण का बतलाया है और इसका टिप्पण न ३१ पर लिखा है - प्रशमरतिप्रकरण ८/४२ । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त उद्धरण प्रशमरतिप्रकरण के आठवे अधिकार के ४२वे श्लोक का है। किन्तु आठवे अधिकार की श्लोक सख्या १२३ से लेकर १६६ तक कुल ४४ है तथा उसका विषय विशेषरूप से बारह भावनाओ से सम्बन्धित है। __यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बहुत खोज करने पर भी प्रशमरतिप्रकरण के पूरे श्लोको मे तथा उनकी टीका मे मुझे 'नग्न श्रमणक दुर्बुद्धे यह वाक्य नहीं मिला। हो सकता है कि दृष्टिदोष के कारण देखने में मुझसे कुछ चूक हो गई हो। मै यह जानना चाहता था कि उक्त वाक्य के आगे-पीछे का वाक्य या प्रकरण क्या है। किन्तु इसे जानने में मुझे सफलता नही मिली। विद्वान लेखक के अनुसार यदि उक्त कथन चार्वाक का है तो यहाँ विचारणीय बात यह है कि चार्वाक ने जैन श्रमण को नग्न ही नहीं कहा है, किन्तु इसके साथ ही उन्हे दुर्बुद्धि (भ्रष्टबुद्धि) भी कहा है। इससे चार्वाक के कथन की सच्चाई का पता चल जाता है कि चार्वाक जैन श्रमण की प्रशसा न करके निन्दा ही कर रहा है। यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि प्रशमरतिप्रकरण में जैन दर्शन से सम्बन्धित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, पॉच व्रत, दश धर्म, बारह तप, बारह भावना आदि का ही वर्णन है। उसमें अन्य किसी दर्शन का खण्डन-मण्डन दृष्टिगोचर नहीं होता है। तब उसमे चार्वाको की बात कहाँ से आ गई । इसे विद्वान लेखक अवश्य ही स्पष्ट करेगे।
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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