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अनेकान्त/८
दृष्टान्ताभास है। क्योकि आकाश मे न तो साध्य (अपौरुषेयत्व) का अभाव है और न साधन (अमूर्तत्व) का अभाव है। व्यतिरेक दृष्टान्त मे तो साध्य और साधन दोनों का अभाव होना चाहिए। इसके विपरीत यहाँ आकाश में साध्य और साधन दोनो का सद्भाव है। इसीलिए यहाँ आकाश का दृष्टान्त व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है।
इतना जान लेने के बाद अब प्रकृतप्रकरण पर विचार करना है। न्यायबिन्दु मे व्यतिरेक दृष्टान्ताभास ९ प्रकार का बतलाया गया है। उनमे से एक भेद है-सन्दिग्ध साध्यव्यतिरेक नामक व्यतिरेक दृष्टान्ताभास । इसी दृष्टान्ताभास को समझने के लिए आचार्य धर्मोत्तरने-'ऋषभवर्द्धमानादिः दिगम्बराणा शास्ता सर्वज्ञ आप्तश्चेति' यह वाक्य लिखा है। पूरा प्रकरण इस प्रकार है ___ तथा सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेकादय । यथाऽसर्वज्ञा. कपिलादयोऽनाप्ता वा। अविद्यमान सर्वज्ञताप्ततालिगभूतप्रमाणतिशयशासनत्वात् । अत्र वैघोदाहरणम्- यः सर्वज्ञ आप्तो वा स ज्योतिर्ज्ञानादिकमुपदिष्टवान् । यथा ऋषभवर्द्धमानादिरिति । तत्रासर्वज्ञतानाप्ततयो. साध्यधर्मयो सन्दिग्धो व्यतिरेक -न्यायबिन्दु ३ १३०
व्यतिरेक दृष्टान्ताभास विषयक यह सूत्र आचार्य धर्मकीर्ति द्वारा विरचित न्यायबिन्दु का है। अब इस सूत्र की आचार्य धर्मोत्तरकृत टीका देखिए। ___य सर्वज्ञ आप्तो वा स ज्योतिर्ज्ञानादिकं सर्वज्ञताप्ततालिङ्गभूतमुपदिष्टवान् । यथा ऋषभवर्द्धमानादि. दिगम्बराणां शास्ता सर्वज्ञश्च आप्तश्चेति । तद् इह वैधयॊदाहरणाद् ऋषभादे असर्वज्ञत्वस्यानाप्ततायाश्च व्यतिरेको व्यावृत्ति सन्दिग्धा । यतो ज्योतिर्ज्ञान चोपदिशेद् असर्वज्ञश्च भवेद् अनाप्तो वा । कोऽत्र विरोध । नैमित्तिकमे तज्ज्ञानं व्यभिचारि न सर्वज्ञत्वमनुमापयेत् । धर्मोत्तर टीका ।
उपरिलिखित सस्कृत वाक्यों का सारांश इस प्रकार है-कोई कहता है- कपिलादि असर्वज्ञ और अनाप्त हैं, क्योकि उनके उपदेश मे सर्वज्ञता और आप्तता का कारणभूत कोई प्रमाण विशेष नही है।