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________________ ये सब कुछ बदलेंगे? पाठकों को सुविदित है कि हमारा लक्ष्य धार्मिक ग्रन्थों की सुरक्षा (यथा स्थिति बनाए रखने) में रहा है और हम किसी भी लोभ-लालच अथवा भय के बिना, अपनी बात को अनेको प्रमाणो से दुहराते रहे है। जबकि कुछ लोग दिगम्बर आगमो मे बदलाव के साथ श्वेताम्बर और बौद्धो के ग्रन्थो मे भी फेर बदल करने पर उतारू हो गये है। इस अंक मे प्रो० उदयचन्द्र दर्शनाचार्य का लेख इस बात का प्रमाण है कि ऐसे लोगो की घात कहाँ तक हो रही है? ___ कुछ दिन पूर्व हमने ऐसे कुछ शब्द भी देखे जिनके अर्थ (बिना किसी प्रमाण के) लेखक ने अपनी मर्जी से बदल दिये जैसे निर्वाण भक्ति में आए 'वासेण' शब्द और चेदियभत्ति मे आए 'वासेहिं' शब्द। इन दोनो शब्दो का अर्थ 'मोक्षरूपी फल' कर दिया (प्राकृत विद्या वर्ष ९ अंक १ पृष्ठ ८)। हमे स्मरण है जब श्री सुभाष जैन ने सम्मेद शिखर जी के सम्बन्ध मे 'बेबाक खुलासा' ट्रैक्ट तैयार किया और उसमे 'श्वेताम्बर शास्त्रो के अनुसार दिगम्बर प्राचीन' के प्रसंग मे श्वेताम्बर शास्त्रो के अनेक उद्धरण सगृहीत किए तब उन्होने वे प्रसग एक दिगम्बराचार्य को बतलाए तो आचार्य श्री ने श्वेताम्बराचार्य हरिभद्रसूरि की ‘प्रशमरति प्रकरण टीका' का एक उद्धरण तोड़ मरोड़कर इस भॉति दिया-'निर्ग्रन्थ एतेन मूलसघादि दिगम्बरा. प्रयुक्त ' और कहा अपने प्रमाणो मे इसे भी दे दीजिए। . हमारे समक्ष जब यह प्रसग आया तब हमने उसे देने से इन्कार कर दिया। क्योकि ऐसा करना श्वेताम्बर ग्रन्थो को बदलने का दुष्प्रयास होता और दिगम्बर आचार्य की हँसाई का परिणाम भी। क्योंकि प्रस्तुत अश व्याकरण सम्मत ही न था-दिगम्बराः शब्द बहुवचनान्त है और क्रिया को 'प्रयुक्तः रूप में एक वचनान्त कर दिया था। जबकि ग्रन्थ में प्रयुक्त: न होकर 'प्रत्युक्ताः' है। जिसका भाव उत्तर देने में है-प्रयोग करने में नहीं। तथा ग्रन्थ में पाठ इस भाति है-'इति अशठ सम्यगागमोक्तेन विधिना स निग्रंथ इति । एतेन मूल संघादि दिगम्बरा प्रत्युक्ता।' 'क्रमशः..... पृष्ठ ४० पर
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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