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________________ अनेकान्त / ३१ १८४४, ६७, ४४०, ७, ३७०९५५, १६१५ अर्थात् एक लाख चौरासी हजार चार सौ सड़सठ कोड़ा कोड़ी चबालीस लाख सात हजार तीन सौ सत्तर करोड़ पचानवे लाख इक्यावन हजार छह सौ पन्द्रह | यह बात श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनो शाखाओ को मान्य है कि चौदह ही पूर्वो के अतिम ज्ञाता थे भद्रबाहु किन्तु दिगम्बर परम्परा मे यह माना जाता है। कि वीर निर्वाण सम्वत् ६८३ के पश्चात् पूर्व ज्ञान व अग ज्ञान की आशिक रूप से धारण करने वाले मुनि धरसेन हुए जिन्हे अग्रायणीय पूर्व के पाचवे वस्तु का महाप्रकृति नाम के चौथे प्राभृत का ज्ञान था। उनके बाद पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्यो ने अग्रायणीय पूर्व के आशिक आधार पर षद् खण्डागम की रचना की । आचार्य गुणधर ने जिनको ज्ञान प्रवाद के दशम वस्तु के तीसरे प्राभृत का ज्ञान था कषाय पाहुड़ की रचना की, आचार्य भूतबलि ने महाबन्ध की रचना की । पूज्यपाद ( ६-७ वी सदी) ने न तो षट् खण्डागम का ही जिक्र किया और न कषाय पाहुड़ का ही। इस बात का भी कोई जिक्र नही किया कि बाकी आगम का क्या हुआ। इससे यह नतीजा निकलता है कि ५-७ शताब्दी ई० तक ये आगम उपलब्ध थे और इसके बाद विच्छिन्न हुए है। खैर हमारे पास अब रह गए है दृष्टिवाद अग के अग्रायणीय और ज्ञानप्रवाद नामक पूर्वो के भी केवल कुछ अश। अग्रायणीय पूर्व मे आते है सात तत्त्वो और नौ पदार्थों के वर्णन तथा ज्ञान प्रवाद मे शामिल है पॉचो ज्ञानो का वर्णन । इसके विपरीत श्वेताम्बर शाखा मे पूज्यपाद के बताए हुए नाम के आगम वर्तमान है यद्यपि वीर नि० स० ५८४ मे आर्यवज्र स्थविर के देहावसान के साथ ही दशम पूर्व या विद्यानुवाद पूर्व विच्छिन्न हो गया । बाकी आगम ग्रथ लगभग ४५, चार-चार वाचनाओ मे काफी छानबीन के बाद सर्व सम्मति से वीर नि० स० ८४३ मे वल्लभी (सौराष्ट्र) मे स्थिर किए गए। कुछ दिगम्बर विद्वानो का मत है कि मौजूदा श्वेताम्बर आगम बहुचर्चित बारह साला दुर्भिक्ष के बाद श्वेताम्बर साधुओ द्वारा निर्मित किए हुए है परन्तु यह प्रश्न तो फिर भी उचित समाधान का मुहताज है कि दिगम्बर परम्परा के शेष आगम विच्छिन्न क्यो होने दिए गए और समय रहते समस्त श्रुत को लिपिबद्ध क्यो नही किया गया । हरिवंश पुराण के सर्ग २ व १० मे श्रुतज्ञान के अन्य बीस भेद भी इस तरह बताए गए है
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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