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________________ अनेकान्त/२८ यह देवदत्त सूरि के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। २. सम्मेदाष्टक - इसके कर्ता जगभूषण हैं। इसकी पद्य सख्या ६ है। अन्तिम पद्य में कर्ता के नाम का उल्लेख है। इसकी पाण्डुलिपि जैन सिद्धांत भवन, आरा मे सुरक्षित है। इसका प्रारभ, अन्त और पुष्पिका निम्न प्रकार है --- प्रारंभ - एकैकं सिद्धकूट ------ राजते स्पृष्टराजकै ।। १।। अन्त - आधिव्याधि. प्रवाधि ------- जगद्भूषणानाम् ।। १।। पुष्पिका - इति श्री जगभूषणकृत सम्मेदाष्टक सम्पूर्णम् । ३. सम्मेदाचल माहात्म्य स्तोत्र - इसके कर्ता अज्ञात हैं। पत्र संख्या तीन है। प्रति पूर्ण है। लेखनकाल संवत् १८२८ है। पद्यो की सख्या २३ है। यह प्रति जैन सिद्धात भवन, आरा में सुरक्षित है। प्रति के प्रारभ, अन्त और प्रशस्ति निम्न प्रकार है ---- प्रारंभ - सम्मेदशैलं .------- भक्तिभरेण नौमि।। १।। अन्त - तीर्थानामुत्तमं तीर्थ निर्वाणपदमग्रिमम् । स्थानानामुत्तमं स्थानं सम्मेताद्रे सम नहि।। २३।। प्रशस्ति - इति सम्मेदाचलमहात्मस्तोत्र समाप्तम् । श्रीरस्तु संवत् १८२८ वर्षे आषाढ द्वितीय वदि अष्टम्यां आदित्यवारे लिखत लक्ष्मणपुरमध्ये श्री पार्श्वनाथचैत्यालये। शुभं भवतु। ४. सम्मेदाचलपूजा - इसके कर्ता गंगादास हैं। पत्र संख्या ८ तथा प्रति पूर्ण है। यह जैन सिद्धात भवन, आरा की प्रति है। इसका अन्य विवरण इस प्रकार है ---- प्रारभ - प्रणम्य सर्वज्ञमनंतबोधामाप्तप्रदं सद्गुणरत्नसिद्धम् । कुर्वे त्रिशुध्या सुभ्रतां हि तीर्थ सम्मेददशैलस्थजिनेन्द्रपूजाम् ।। अन्त - चतु: मुनीन्द्रिभिः श्लोकै मातृछंदो बचोमये। ज्ञातव्या ग्रन्थसंख्या नृगणकै लेखकोत्तमै ।। ।। प्रशस्ति - इति भट्टारक श्री धर्मचन्द्र विनुचर पडित गंगादासकृत सम्मेदाचलपूजा समाप्तम्। इसकी पाँच अन्य प्रतियाँ राजस्थान के शास्त्रभंडारो मे भी उपलब्ध हैं। (रा. सू.-४, पृ ५४६, ७२७ तथा रा सू. ५ पृ. ६२२)
SR No.538051
Book TitleAnekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1998
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size4 MB
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