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अनेकान्त/२७
विजयमुनि ने अपनी रचना "सम्मेदशिखर चैत्यपरिपाटी में भी किया है।
प्राय सोलहवीं शताब्दी तक सम्मेदशिखर विषयक स्वतन्त्र साहित्य का अभाव दिखलाई देता है। लेख में उल्लिखित ग्रन्थ प्रशस्तियो से लोहाचार्य विरचित “तीर्थमाहात्मय” का पता चलता है, किन्तु अन्य स्त्रोतो से इसकी जानकारी नहीं मिलती है। यह ग्रन्थ प्राचीन होना चाहिए तथा इसकी भाषा प्राकृत या सस्कृत होना चाहिए, क्योंकि देवकरण ने अपने सम्मेदविलास में इनके ग्रन्थ को “गाथाबध” बताया है। इस ग्रन्थ की खोज आवश्यक है।
प्रस्तुत लेख मे सस्कृत और हिन्दी भाषा के सम्मेद शिखर विषयक स्वतन्त्र साहित्य की हस्तलिखित पाण्डुलिपियो का परिचय दिया जा रहा है - संस्कृत भाषा की रचनाएँ :
१. सम्मेदशिखर माहात्म्य - इसके कर्ता दीक्षित देवदत्त है। डॉ कस्तूरचन्द्र कासलीवाल ने इसका रचनाकाल संवत् १६४५ लिखा है। इस ग्रन्थ की पाण्डुलिपियाँ शास्त्र भडार दि. जैन मन्दिर पाटोदी, जयपुर, शास्त्र भडार दि जैन मन्दिर सघी जी जयपुर, शास्त्र भडार दि जैन मन्दिर छोटे दीवानजी जयपुर, महावीर शास्त्र भडार चॉदनगॉव (राज) तथा दि जैन सरस्वती भडार नया मन्दिर, धर्मपुरा, दिल्ली मे उपलब्ध है। यह ग्रन्थ २१ अध्यायो में विभाजित है। कुल ग्रन्थ सख्या १८०० है। दिल्ली की प्रति का प्रारभ, अन्त और प्रशस्ति इस प्रकार है --- प्रारभ - ध्यात्वा --------- म्यहम् ।। अन्त . यावच्चन्द्र ------------ सता तिष्ठान् ।। ११६ ।। प्रशस्ति - सम्मेदशिखर पूरब दिशा तीर्थकर चतुबीस।
सेठमल्ल कर जोरि कै जी सुतराय सुवश ।। १।। प्रथम अष्ट सवत्सरे अष्ट चतुर्थ यह साल।
वदि वैशाख रवि पंचमी पूरन ग्रन्थ सहाल ।। २।। इस ग्रन्थ की स १८४५ की एक प्रति दि. जैन मन्दिर ठोलियों का जयपुर में उपलब्ध है। एक अन्य प्रति सवत् १७८५ की बधीचंदजी के मन्दिर जयपुर में भी है। इस प्रकार इसकी कुल सात प्रतियाँ होने की जानकारी है। इसका सम्पादन प. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ने किया है।