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________________ अनेकान्त / १० सम्मं में सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केण वि । आसाए वोसरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए । मूलाचार-२/६ उक्त गाथा मूलाचार ३/३ मे भी प्राप्त होती है। सम्मं मे सव्वभूएस वेरं मज्झ न केणई। आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए || वीरभद्र / आउरपच्चक्खाण- १६/२२/२६३४ सम्मं मे सव्वभूएस वेरं मज्झ न केणई। आसाओ वोसिरिताणं समाहिमणुपालए।। वीरभद्र / आउरपच्चक्खाण - १६/१४/२८२६ सम्मं मे सव्वभूसुवेरं मज्झ ण केणइ । आसाओ वोसिरित्ताणं समाहिमणुपालए। आराहणापडाया-१/५६४ सम्मं मे सव्वभूएस वेरं मज्झ न केणइ । खामि सव्वजीवे खमामऽह सव्वजीवाणं ।। महापच्च - ७ /१४०/१५८० खामि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभूएस वेरं मज्झं न केणइ ।। आउरपच्चक्खाण (१)-६/८/१४१८ णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसायिणो । संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे || नियमसार - १०५ यह गाथा मूलाचार तथा वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे प्राप्त होती है। उनका मूलपाठ निम्न प्रकार है णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो । संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे । । मूलाचार-२/६८/(१०४) णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो । संसारपरिभीयस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे ।। वीरभद्र / आउरपच्चक्रवाण- १६/६९/२८८१ आलोयणमालुंछण वियडीकरण च भावसुद्धी य। चविहमिह परिकहिय आलोयणलक्खणं समए । | नियमसार - १०८ इस गाथा की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिए
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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