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________________ अनेकान्त/९ एओ मे सस्सओ अप्पा णाणदसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। मूलाचार-२/१२(४८) एक्को मे सासओ अप्पा नाणदसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। महापच्चक्खाण-७/१६/१४५६ एगो मे सासओ अप्पा नाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। चदोवेज्झय-३/१६०/६४८ -आराहणापयरण-५/६७/२५८६ -आउरपच्चक्खाण (१)-६/२९/१४३९ -वीरभद्र/आउरपच्च १६/२७/२८३९ जं किंचि मे दुच्चरितं सव्वं तिविहेण वोसरे। सामाइयं तु तिविहं करेमि सव्वं णिराकारं।। नियमसार-१०३ उक्त गाथा मूलाचार, वीरभद्द के आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्चाण तथा मरण-विभक्ति में उपलब्ध होती है। ग्रन्थान्तरो का मूलपाठ निम्न प्रकार है जं किंचि मे दुच्चरियं सव्वं तिविहेण वोसरे। सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं णिराया।। मूलाचार-२/३ जं किंचि वि दुच्चरिय तं सव्व वोसिरामि तिविहेण। सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागार।। वीरभद्र/आउरपच्चक्खाण-१६/१९/२८३१ जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निदामि सव्वभावेण। सामाइयं च विविहं करेमि सव्व निरागारं।। महापच्चक्खाण-७-३/१४४३ जं किंचि वि दुच्चरियं तमह निंदामि सव्वभावेण। सामाइयं च मि तिबिहं तिविहेण करेमऽणागरं।। मरणविभक्ति-५/२११/९६० सम्मं मे सव्वभूदेसु वेरं मज्झं ण केण वि। आसाए वोसरित्ताणं समाहिं पडिवज्जए।। नियमसार-१०४ यह गाथा मूलाचार मे दो बार, वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे दो बार तथा आराहणापडाया मे मिलती है। महापच्चक्खाण तथा आउरपच्चक्खाण (१) मे उक्त गाथा का पूर्वार्द्ध यथावत् मिलता है। उनका मूलपाठ इस प्रकार है
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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