SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/30 को किसी ने अकुशल हाथों से उभारने का प्रयत्न किया है जिससे मूल चित्र दब गये हैं। इनकी शैली को हम अजंता पूर्व शैली स्थापित करते हैं जिसमें ओज एवं प्रयोगशीलता की प्रवृत्ति है। __ इस समय जोगीमारा के अतिरिक्त अनेक जैन अन्य गुफाओं को भी चित्रित किया गया होगा किन्तु भारत की जलवायु के कारण ये चित्र नष्ट हो गए हैं। सम्राट अशोक के महल की चित्रकारी तथा पत्थर की खुदाई के कार्य को देखकर चीनी यात्री फाह्यान यह कह उठा था कि उसे मनुष्य नहीं बना सकते। उस समय लकड़ी का प्रयोग भवन निर्माण में बहुतायत से होता था अतः उस समय की कला लकड़ी के साथ ही नष्ट हो गई। इसी प्रकार ईसा पू. प्रथम शती की कुछ गुफायें बम्बई पूना रेल मार्ग पर मलवली स्टेशन से आधा कि. मी. दूर पर हैं इनकी संख्या अठारह है इन्हें भाजा की गुफायें कहते हैं। इनमें में जैन प्रतीकों का चित्रांकन मेरा एक शोध आलेख 'हथफोर की रंगशाला' नाम से शोधादर्श में अस्सी के दशक में प्रकाशित हुआ था जहां तक रंगमंच के स्वरूप का सम्बन्ध है सीतामढ़ी तथा जोगीमढ़ा के अवशेष भारतीय रंगमंच के सबसे प्राचीन प्रत्यक्ष उदाहरण कहे जा सकते हैं इनके देखने से भरतकृत नाट्यशास्त्र आदि ग्रंथों में वर्णित नाट्यमंडपों का जीता जागता स्वरूप सामने आ जाता है। इन दोनों गुफाओं का पुरातत्वीय महत्व बहुत अधिक है और प्रत्येक में प्राकृत भाषा में एक ब्राह्मी लेख खुदा है यह अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में ही लिखे गये हैं अक्षरों की बनावट से डॉ के.डी. वाजपेयी ने इन्हें 200ई.पू. सिद्ध किया है। कुछ विद्वानों का मत है इन गुफाओं का निर्माण मौर्य कालीन लामशऋषि गुफा आदि से पहले हुआ होगा। डॉ. ब्लाश ने 1904 में इन गुफाओं पर जर्मन भाषा में एक लेख लिखकर विद्वानों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था। सतनुका नामक नर्तकी का वर्णन इस प्राकृत लेख में है उसके प्रेमी का नाम देवदत्त था संभवतः इसी देवदत्त ने उक्त लेख गुफाओं में उत्कीर्ण कराये। भरत ने नाट्य शास्त्र में कई प्रकार के नाट्य मंडपों का विवरण दिया है उन्होंने एक स्थान पर पहाड़ की गुफा के आकार वाले द्विभूमि नाट्यमंडप की चर्चा की है "कार्य:शैल गुटाकारो द्विभूमि नाटय मंडपमुः (नाट्य शास्त्र 1/817) नागवंशी/व्रात्य आदि अनार्य जातियों के बारे में कहा जाता है कि कालिदास, भास, शूद्रक, भवभूति प्रख्यात विद्वानों के नाटक लोक नाट्य शैलगृहों में खेले जाते रहे हों संभव है। कुछ विद्वानों का मत है शैलगृहों में आदिवासी नृत्य नाट्य करते थे। आर्यों के आने पर खुले नाट्य गृहों का प्रयोग किया गया जो आकार में बड़े होते थे। ___ यथार्थ की परिभाषा में व्यतीत ही हमारा हमारा भोगा हुआ यथार्थ है और विरासत का संरक्षण हमारे कार्यों की सीमा गणना है। पुरातत्व हमें जिज्ञासु बनाता
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy