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________________ अनेकान्त/32 चित्र हैं। एक घर में जिसमें चैत्यालय, खिड़की और हाथी भी दिखाया गया है। श्री असित कुमार हाल्दार के अनुसार प्रथम चित्र लहरों को व्यंजित करने वाली गहरी तथा अलंकारिक रेखाओं में नदी एवं एक विशालकाय-शार्क मछली भी अंकित प्रतीत होती है इसी प्रकार चित्र नं. 3 में श्री हाल्दार के अनुसार कल्पवृक्ष तथा पत्तियाँ गेरुए रंग से बनाये गये हैं। काले रंग से उद्यान का चित्रण हुआ है। इसमें जो पुष्प हैं उन्हीं में से एक पर नृत्य करते हुए स्त्री पुरूष युगलिया भी चित्रित किए गये हैं। डॉ. ब्लाख ने प्रथम चित्र में नर्तकियों और संगीतज्ञों का उल्लेख किया है किन्तु श्री हाल्दार ने पांचवें पैनल में भूमि पर बैठी हुई एक स्त्री और कुछ संगीतज्ञों का नृत्य हुए चित्र बने होने का उल्लेख किया है। इस चित्र के हाल्दार का मत है कि इसकी रेखा में भी शैली से साम्य रखती है और चित्रों का संयोजन अजंता से पूरी तरह मिलता हुआ प्रतीत होता है। श्री हाल्दार ने एक अन्य चित्र का भी उल्लेख किया है जिसमें छोटे छोटे बौने व्यक्ति अंकित हैं बौनों का अंकन वर्तमान के संदर्भ में है इससे आदमी के कद नैतिकता, आध्यात्मिकता को प्रतीकात्मकता के साथ दर्शाया गया है। चित्रकारों ने किसी अवधिज्ञानी की ज्ञानधारा से प्रेरणा लेकर भविष्यवाणी के आधार पर बौनी आकृतियों का चित्रण किया है। श्री हाल्दार ने छठे एवं सातवें पैनलों में यत्र तत्र बची हुई रथों आदि की आकृतियों का उल्लेख किया है। उनके विचार से इनकी आकृति प्राचीन ग्रीक रथों से मिलती जुलती है। श्री मर्सी ब्राउन के अनुसार इन चित्रों के किनारों पर अनेक प्रकार के आलेखन जिनमें मछलियों मकरों तथा अन्यजल जन्तुओं का प्रयोग है। ऐसा लगता है ये Pictographs हैं इनकी अपनी प्रतीकात्मक भाषा है। ये सब चित्र किस कथा से सम्बन्धित हैं यह ये विद्वान स्थपित नहीं कर पाये हैं। मूल चित्रों की रेखायें उन पर पुन: खीची गयी चित्राकृतियों में छिप गयी हैं। डॉ. गिर्राजकिशोर अग्रवाल के अनुसार बचे हुए भितिचित्रों के आधार पर इन चित्रों का विषय जैन सम्मत है। जोगीमारा की गुफाओं में प्रायः सफेद, लाल तथा काले रंग का ही प्रयोग है। कहीं कहीं पीले रंग का आभास होता है पर उसे उड़े हुए लाल रंग का अवशेष माना जाता है। सफेद रंग खड़िया है, लाल रंग हिरोंजी तथा काला रंग हर्रा नामक फल से तैयार किया गया है। चित्र बनाने में किसी घास से बनी तूलिका का प्रयोग किया है। प्रायः लाल रंग की रेखाओं से चित्र एक दूसरे से अलग किए गये हैं। धरातल को भी अच्छी तरह एकसा नहीं किया गया है। कहीं कहीं गुफा की खुरदरी दीवार पर बिना कोई अस्तर चढ़ाये ही चित्र अंकित कर दिये गये हैं और कहीं कहीं चूने का बहुत हल्का पलस्तर है। साधारण दृष्टि से देखने पर ये चित्र किसी अनाड़ी के हाथ की कृति प्रतीत होते हैं पर ध्यान देने पर पता चलता है कि पहले बने चित्रों के मूल रूप
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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