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________________ अनेकान्त/28 है। किन्तु अभी भी काफी अवशेष है। सम्पूर्ण भारत-वर्ष के सुदूर अञ्चलों में स्थापित जिनालयों के शास्त्र-भण्डारों का अवलोकन करके सूचीकरण करवाया जावे । पाण्डुलिपियों के संग्रहालय स्थापित किये जावें । जहाँ पर उनको लेमिनेशन अथवा माइक्रो-फिल्म द्वारा सुरक्षित रखा जावे । प्राचीनकाल से ही समाज को दिशा-बोध देने में पूज्य मुनिराजों की अग्रणीय भूमिका रही है। उनका प्रभाव सर्वत्र रहता है। यदि हमारे पूज्य मुनिराजगण इस दिशा में थोडा सा भी ध्यान आकृष्ट कर लें तो यह महत्वपूर्ण समयोपयोगी कार्य शीघ्र ही हो सकता है। मेरी रूचि इन प्राचीन पाण्डुलिपियों के प्रति अत्यधिक है। इनके प्रति आत्मीयता के कारण बीना (सागर) म.प्र. में “अनेकान्त ज्ञान मंदिर की स्थापना करवाकर और इसी को अपना कार्यक्षेत्र बनाकर पाण्डुलिपियों के सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ किया है। कार्य लम्बा है और श्रम-साध्य है। श्रुत-भक्ति के फलस्वरूप अल्प समय में चार प्रान्त (मध्मप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान एवं बिहार) के शताधिक शास्त्र भण्डारो का अवलोकन कर चुका हू और सहस्राधिक पाण्डुलिपियों को बीना स्थित "पाण्डुलिपि संग्रहालय" में सूचीकरण करके लेमिनेशन द्वारा सुरक्षित कर विराजमान करवा दी हैं। अब जरुरत है कि, साहित्य मनीषी एवं अन्वेषकों की कि वे इन पाण्डुलिपियों का भरपूर उपयोग करें। मेरी इस “शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा" की साधना का अभिप्रेत-फल तो अब प्राप्त हुआ है कि राजस्थान प्रान्त के सर्वेक्षण के दौरान 'पिड़ावा' (झालावाड़) जाने का अवसर मिला । उधर के शास्त्र-भण्डारो से एक ऐसी पाण्डुलिपि प्राप्त हुई है कि वह आगम अन्वेषकों के लिये अपनी विलुप्त जैनवाङ्मय की खोज के लिये मील का पत्थर बनेगी। यह पाण्डुलिपि एक पोथीनुमा है। और इसमें प्राचीन जैन आचार्यो द्वारा रचित ग्रन्थों की नामावली दी हुई है। इस पाण्डुलिपि में उल्लिखित ग्रन्थो के नामों का कई ग्रन्थों के साथ समीक्षात्मक अध्ययन करके मैं इस निष्कर्ष पर पहुचा हूं कि बहुत सी अचर्चित अज्ञात विलुप्त जैन कृतियों का उल्लेख है। ये रचनायें आज तक किसी मनीषी की दृष्टि में नही आ पायीं थीं। इस लेख में कुछ अज्ञात अनुसंधान रचनाओं का उल्लेख कर रहा हूँ। हमें आशा है कि हमारे विद्वान, मनीषी इन रचनाओं की खोज करके, उन रचनाओं को प्रकाश में लाने का कार्य करके जैन वाङ्मय की वृद्धि करेंगे। (1) आचार्य पूज्यपाद स्वामी :- इनकी उपलब्ध रचनाओं के अतिरिक्त दो रचनाओं का उल्लेख प्राप्त हुआ है। (1) पञ्च वास्तुक (2) पूजा कल्प। (2) आचार्य अकलंकदेव :- आप न्याय के निष्णात विद्वान थे। आपकी उपलब्ध रचनाओं के अतिरिक्त कुछ कृतियों का उल्लेख निम्न प्रकार से मिलता है - चूर्णि, प्रहाचूर्णी, प्रयाश्चित ग्रन्थ । (3) आचार्य विद्यानन्द स्वामी :- ऐसे सारस्वत हैं जिन्होने प्रमाण और दर्शन
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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