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________________ अनेकान्त/21 क्वाजल कोटल संस्कृति की व्यापक और स्पष्ट छाप दृष्टिगोचर होती है। मध्य अमेरिका में आज भी अनेक स्थलों पर क्वाजल कोटल के स्मारक और चैत्य प्राप्त होते हैं। लटविया के प्रमुख लेखक पादरी मलबरगीस ने 1856 में लिखा है कि लटविया, एस्टोनियां लिथुएनिया और फिनलैंड वासियों के पूर्वज भारत से जाकर वहां बस गए थे। इनमें अधिकांश पणि व्यापारी थे जो जैन धर्मालम्बी थे। कतिपय हस्तलिखित ग्रन्थों में ऐसे महत्वपूर्ण प्रमाण मिले हैं कि अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, टर्की आदि तथा सोवियत रूस के अजोब सागर से ओब की खाड़ी से भी उत्तर तक तथा लाटविया से अल्ताई के पश्चिमी छोर तक किसी काल में जैन धर्म का व्यापक प्रसार था। इन प्रदेशों में अनेक जैन मंदिरों, जैन तीर्थकरों की विशाल मूर्तियों, धर्म शास्त्रों तथा जैन मुनियों की विद्यमानता का उल्लेख मिलता है।9 बेबीलोन से लेकर यूरोप तक जैनधर्म का व्यापक प्रभाव था। मध्य यूरोप, ऑस्ट्रिया और हंगरी में आए भूकम्प के कारण भूमि में एकाएक आये परिवर्तनों से बुडापेस्ट नगर में एक बगीचे में भूमि से महावीर स्वामी की एक मूर्ति निकली थी। सातवीं शती ईसा पूर्व में हुए यूनान के प्रसिद्ध मनीषी जैन साधक और जैन संन्यासी थे। यूरोप और बेबीलोन दोनों का संबध इयावाणी ऋष्यश्रृंग के उपाख्यान से भी सिद्ध होता है। मौलाना सुलेमान नदबी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'भारत और अरब के संबंध'11 में लिखा है कि संसार मे पहले दो ही धर्म थे एक समनियमन और दूसरा केल्डियन । समनियन लोग पूर्व के देशों में थे। खुरासान वाले इनको 'शमनाम' और 'शमन' कहते हैं। वेनसांग ने अपने यात्रा प्रसंग में 'श्रमणेरस' का उल्लेख किया है |12 चीन के एक प्रोफेसर तान यून शान ने लिखा है कि तीर्थकरों ने अहिंसा धर्म का विश्व भर में प्रसार किया था। चीन की संस्कृति पर जैन संस्कृति का व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। चीन पर ऋषभदेव के एक पुत्र का शासन था। वस्तुतः चीन से केस्पियाना तक पहले ही श्रमण संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो चुका था। श्रमण संस्कृति तो महावीर से 2000 वर्ष पूर्व ही आक्सियाना से हिमालय के उत्तर तक व्याप्त थी 13 लेनिनग्राड स्थित पुरातत्व संस्थान के प्रोफेसर यूरी जेड्नेप्रोवस्की ने 20 जून 1967 को नई दिल्ली में एक पत्रकार सम्मेलन में कहा था कि भारत और मध्य एशिया के बीच संबंध लगभग एक लाख वर्ष पुराने हैं अर्थात् पाषाण काल से हैं तथा यह स्वाभाविक है कि जैन धर्म मध्य एशिया में फैला हुआ था।14 प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासवेत्ता श्री जे.एस.दुबे ने लिखा है कि एक समय था जब जैन धर्म का कश्यप सागर से लेकर कामचटका की खाड़ी तक खूब प्रचार-प्रसार हुआ था। न केवल यह बल्कि जैन धर्म के अनुयायी यूरोप और अफ्रीका तक में विद्यमान थे।15
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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