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________________ अनेकान्त/9 4. जं णाणीण वियप्पं सुवासयं वत्थुअंससंगहणं। तं इह जयं पउत्तं णाणी तेण णाणेण।। -नयचक्र, गाथा 173. नेगम-संगह-ववहार उज्जुसूए चेव होई बोधव्वा। सद्दे य समभिरुढे एवंभूए य मूलनया।। -समणसुत्त, नयसूत्र, गाथा 9. 6. पढमतिया दबत्थी पज्जयगाही य इयर जे भणिया। ते चदुअत्थ पहाणा सद्द पहाणा हु तिण्णिया।। -समणसुत्त, नयसूत्र गाथा 10. ___जं संगहेण गहियं भेयई अत्थं असुद्धं सुद्धवा। सो ववहारो दुविहो असुद्धशुद्धत्थभेयकरो।। __ -समण सुत्त, नयसूत्र, गाथा 16. जहणवि सक्कमणज्जो अणज्जभासं विणाउ गाहेउं। तह ववहारेण विणा परमत्थुवएसणमसक्क।। -समय पाहुड़, गाथा 8. 9. दंसण णाणचरित्ताणि सेविदव्वाणि साहुणा णिच्च। ताणि पुण जाण तिण्णिवि अप्पाणं चेव णिच्छयदो।। ___-समय पाहुड़, गाथा 16 णियमेण य जं कज्जं तण्णियमं णाणदंसणचरितं। विवरीय परिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणं ।। -नियमसार, जीवाधिकार, गाथा 3. 11. णियमं मोक्ख उवायो तस्स फलं हवदि परमणिव्वाणं। एदेसिं तिण्हं पि य पत्तेयपरुवणा होई।। नियमसार, जीवाधिकार, गाथा 4. जं सुत्तं जिणउत्तं ववहारो तह य जाण परमत्थो। तं जाणिऊण जोई लहइ सुहं खवइ मलपुंज।। -सुत्त पाहुड़, गाथा 6 -37, राजपुर रोड, दिल्ली-110054 10.
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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