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________________ आवरण ३ का शेष “तस्स मुग्गद वयणं पुव्वापर दोस विरहियं सुद्धं ।” . नियमसार, गाथा-८ इससे पूर्व कसाय पाहुड़ की टीका मे भी इसका प्रतिपादन मिलता है - जिणवयण णिच्च सच्चा सव्वणया पर वियालणे मोहा। ते उण ण दिट्ठसमओ विभयइ सच्चे व अलिए वा ।। - भाग - १, पृ० २५७ वे सभी नय अपने अपने विषय का कथन करने में समीचीन है और दूसरे नयो का विचार करने मे मोहित है । अनेकान्त रूप समय (आगम) के ज्ञाता पुरुष यह नय सच्चा है और यह नय झूठा है-ऐसा विभेद नहीं करते हैं। इस प्रकार सभी नय भूतार्थ ही है। किसी नय को अभूतार्थ कहना जिनागम की अवहेलना ही होगी । सम्पूर्ण समय पाहुड़ ग्रंथराज नव पदार्थो का भूतार्थ (व्यवहार और निश्चय) नय से ज्ञान कराता है, जैसा कि उसकी गाथा - " -“भूयत्थेण अभिगदा | से स्पष्ट है। भूतार्थ से जाने गए जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, सवर, निर्जरा और मोक्ष सम्यक्त्व है। यहाँ पर आचार्य ने भूतार्थ पद देकर निश्चय और व्यवहार दोनो नयो का समावेश किया है और दोनो नयो की सापेक्षता से ही गाथा मे वर्णित सम्पूर्ण पदार्थों की सिद्धि होती है और दोनो सापेक्ष नय ही सम्यक्त्व युक्त ज्ञान के साधन है और इन्हे भूतार्थ जानना चाहिये । · 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क १०१.००रु. वार्षिक मूल्य ६रु., इस अंक का मूल्य १ रुपया ५० पैसे यह अक स्वाध्याय शालाओ एव मंदिरों की माग पर निःशुल्क + विद्वान लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र है। यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक - मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो । पत्र मे विज्ञापन एवं समाचार प्राय नहीं लिये जाते । सपादन परामर्शदाता : श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, सपादक श्री पद्मचन्द्र शास्त्री प्रकाशक भी भारत भूषण जैन एडवोकेट, वीर सेवा मंदिर, नई दिल्ली-२ • मुद्रक मास्टर प्रिंटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली- ३२ Regd. with the Registrar of Newspaper at R. No. 10591/62
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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