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________________ अनेकान्त/११ अर्थक इदि प्रयुक्त हुए है। "ति" एव “त्ति" का प्रयोग वैशिष्टय इन उदाहरणो में देखा जा सकता है-ति-मग्गफल (२) विहावणाण ति (१०) सहावणाणंति (११) कारणं ति (२५)। त्ति को भी देखिए-दिट्ठि त्ति (१४), दव्वो त्ति (२९) अत्यिकाय त्ति (३४) होदि त्ति (६४. १३४) गुत्ति त्ति (६८. ७०) मग्गोत्ति (१४१) जुत्ति त्ति (१४२)। नियमसार मे "एव' का प्रयोग स्वतन्त्र शब्द के रूप में प्रयोग नहीं हुआ है। यहां यह सर्वत्र अपने पूर्ववर्ती शब्द के साथ सन्धि कर लेता है। यथा-चेव-च+एव (१२, २०) णेव-ण+एव (२६, ७७, ७८), तस्सेव-तस्स+एव (५७, ५८), तत्थेव-तत्य+एव (९८, १७९, १८०) झाणमेव-झाणं+एव (९२, ९३), णिव्वाणमेव-णि वाण+एव (१८३) आदि । निश्चयार्थक "खलु" के अर्थ में “खलु” (३, ३९, १४४) एवं "खु" (१००, ११५) दोनो प्रयोग उपलब्ध है। इसी अर्थ मे “हि (६१, ७८) एव "हु' (२०, ३४, ३५, ४९) भी मिलते है।''और'' अर्थ मे "च और "य" दोनो मिलते है। "तु" के लिए "दु का बत्तीस बार प्रयोग हुआ है तथा पाच बार "णो" भी आया है। निषेध अर्थ मे "मा' (१८६) भी मिला है। 'अपि' के लिए "पि" (४, १३५) एव "वि" (१४) का प्रयोग मिलता है। उपर्युक्त अव्ययों के अतिरिक्त 'इह' (१०८), एत्तो (७६), एवं (१०६, १४०), कह (१३७, १३८), किचि (१०३),केइ (९७,१८६), कोई (१६६, १६९), जह (४८, ९४, १६०), जाव (१८४) तह (४८, ९४, १६०) ताव (३६) ण (१०४), तइया (१६२, १६३), तत्तो (१८४, तत्य (९८, १७०, १८०), तदा (९४), पुणो (२५, २४), सपदी (३२) आदि भी देखे जा सकते है। संख्यात्मक प्रयोग नियमसार मे कतिपय सख्यात्मक प्रयोग भी मिलते है यहा एक के लिए "एक्को " (१५७), एगो (१०१, १०२) एव एय (२७, ३६) दो के लिए "दु" (२.१०, ११, १३) एव दो (२७) तीन के लिए "ति'- (१२, ३१) “तिण्णि" (१४) एव “तिदिय" (५८)। चार के "चउ' (१२, १७) आदि), चउक्कस्स
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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