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________________ अनेकान्त/१० भविष्यत काल उत्तम पुरूष एकवचन में वोच्छामि (१) एव पवक्खामि (५४, ७६, ८२) रूप मिलते हैं। मध्यम पुरूष का कोई रूप प्रयुक्त नहीं है। अन्य पुरूष एकवचन में "काहदि" (१२४) रूप मिला है। विधि एवं आज्ञार्थक रूपों में विणु (१७१) धरू (१४०) कुज्जा (१४८) करेज्ज (१५४) जाण (४६.१५३) कुणह (१८६) चिंतिज्जो (९८) वज्जिज्जो (१५६) हवे (५, ११) एवं पूरयंतु (१८५) के प्रयोग उपलब्ध होते है। प्रत्यय-प्रयोग कृदन्त प्रयोगो की दृष्टि से देखने पर सम्बन्ध कृदन्त, वर्तमान कृदन्त, भूतकालिक कृदन्त, विध्यर्थ कृदन्त तथा हेत्वर्थ कृदन्त के रूप मिलते हैं। सम्बन्ध कृदन्त के विभिन्न रूप इस प्रकार है। १. मोत्तूण (८३, ८४) २ काऊण (१४०) चइऊण (९१) ठविऊण (१३६) णमिऊण (१) दठूण (५९) परीक्खऊण (१५५) पेच्छिऊण (५८) लभ्रूण (१५७)। ३ किच्चा (८३, ९५, १२०) पच्चा (९४, १८७) सोच्चा (१८६)। ४ चइत्तु (१५७) परिहरित्तु (१२१) सठवित्तु (१०९)। ५ चत्ता (८८) परिचत्ता (६२, ८६)। वर्तमान कृदन्त के कतिपय प्रयोग इस प्रकार देखे जा सकते हैं-अवलोगतो (६१) कुव्वतो (१५२) जाणतो (१७२) पस्सतो (१७२) पेच्छतस्स (१७६) वदतस्स (६२) वहतस्स (६०)। भूतकालिक कृदन्त के भी कतिपय उदाहरण देखे जा सकते है-भणिद (१, १३), कद (१८७) आदि । विध्यर्थ कृदन्त के कायव्व (१५४) कायव्वो (११३) णादव्व (१७) णादव्वा (१६) णादव्वो (२५) बोधव्वा (१४२) मुणेयव्व (१६०) रूप मिलते हैं। हेत्वर्थ कृदन्त के धरिदु (१०६) एव कादु (११९, १५४) रूप मिले हैं। अव्यय-प्रयोग "अथवा इस अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए "अहव" (३१, ५९) "व" (५७) एव 'वा' (३९, ४०, ४१, ५८, ६७) का प्रयोग मिलता है। "इति"
SR No.538050
Book TitleAnekant 1997 Book 50 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1997
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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