________________
अनेकान्त/३
"प्रकृतिः शौरसेनी' सूत्र का वास्तविक
प्रयोजन क्या?
डा. के.आर. चन्द्र अभी अभी शौरसेनी भाषा के बारे मे जो प्रचार किया जा रहा है उसके बारे मे भी थोड़ासा विचार करना अनिवार्य बन गया है। अनेक प्राकृत भाषाओं के विकास क्रम में ऐतिहासिक दृष्टि से शौरसेनी का क्या स्थान है यह जानना परमावश्यक बन गया है। सदर्भ को तोड-मरोडकर किसी सूत्र का अपना मनमाना अर्थघटन करना एक अलग बात है और अन्य भाषाओ के सदर्भ के साथ उसका अर्थ समझना अलग बात है। एकान्त सत्यांश अवश्य है, वह भी तब जब अन्य अन्तो का, पक्षो का, दृष्टियो का पूरा ध्यान रखा जाता है। यदि अन्य अन्तो को तिलाजलि देकर, उनका सर्वथा बहिष्कार करके एकान्त कूटस्थ नित्य का रुख अपनाया जाय तो वह एकान्त-सत्यांश पूर्णतया झूठ और मिथ्या हो जाता है। ऐसी ही कुछ परिस्थिति इन कुछ वर्षों मे आग्रहकदाग्रह अथवा ऐसा कहिए कि जानबूझकर खड़ी की जा रही है। ___ 'प्रकृतिः शौरसेनी' (प्राकृत प्रकाश, वररुचि, परिच्छेद एव सूत्र) (१०१, ११.२)
इस सूत्र का सदर्भ से विच्छेद करके जोर-शोर से इस प्रकार समझाया जा रहा है, कि "शौरसेनी प्राकृत" भाषा सभी प्राकृत भाषाओं की जननी जन्मदाता, स्रोतभाषा है। यही भाषा सारे भारत में पूर्वकाल में प्रचलित थी और इसी भाषा में से अन्य प्राकृतो की उत्पत्ति हुई है। इतना ही नही सभी आधुनिक भाषाएँ भी इसी मे से निकली है।